माण्डुकी मुद्रा
फिर वही बिन्दु पान करना है। उस अमृत रस को निचे गिरने से रोकना है ,लेकिन इस बार विधि भिन्न है।
घेरण्ड सहिंता में माण्डुकी मुद्रा का वर्णन किया गया है। उसके अनुसार -
"मुखं सम्मुद्रितं कृत्वा जिह्वामूलं प्रचालयेत।
शनैर्ग्रसेदमृतं तां माण्डुकीमुद्रिकां विदुः।। "
मुख (विवर)को अच्छी प्रकार से बन्द करके जिह्वा मूल को तालु के ऊपर इधर उधर घुमाकर सहस्रदल कमल से गिरने वाले अमृत रस का धीरे धीरे पान करने को माण्डुकी मुद्रा कहते है।
लाभ :
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है -
"वलितं पलितं नैव जायते नित्ययौवनम।
न केशे जायते पाको यः कुर्यान्नित्यमाण्डुकीम।।"
जो व्यक्ति प्रतिदिन माण्डुकी मुद्रा का अभ्यास करते है उनके शरीर पर कभी भी झुर्रिया नहीं पड़ती है। और वृद्धा अवस्था आने पर भी बाल सफ़ेद नहीं होते है। उसके बाल कभी सफ़ेद नहीं होते है तथा उसका यौवन चिरकाल तक विद्यमान रहता है।
विश्लेषण :
इस मुद्रा में जीभ को उसी स्थान पर बार बार स्पर्श करने का अभ्यास करना है जिसे विवर कहा गया है अर्थात वह स्थान जिस पर दोनों नाक,दोनों कान,तथा मुँह की नाडीयाँ आपस में मिलती है। बार बार उस स्थान पर जीभ घुमाने से उस विवर से गिरने वाले बिंदु का क्षरण नहीं होता है। हालांकि उस स्थान तक जीभ बिना अभ्यास के नहीं पहुंचती है। परन्तु फिर भी उस विवर के आस पास तक पहुँच जाती है उससे भी अनेक फायदे होते है।
यह मुद्रा खेचरी मुद्रा में सहायक है तथा लगभग खेचरी मुद्रा के प्रारम्भिक लाभ के समान माण्डुकी मुद्रा के लाभ है। अन्तर यही है की खेचरी मुद्रा को आम साधक सिद्ध नहीं कर सकते है,जबकि माण्डुकि मुद्रा को कोई भी आम साधक कर सकते है।
शारीरिक स्तर पर -
इस मुद्रा के अभ्यास से मुँह में बदबू नहीं होती ,दांतों सम्बन्धी रोग जैसे पायरिया वगैरह नहीं होता है। आँखों की रोशनी बढ़ती है।जीभ की क्रियाशीलता बढ़ती है। जिससे विभिन्न पाचन सम्बन्धी रोग दूर हो जाते है। व्यक्ति की मानसिक क्षमता बढ़ती है। तथा बालों का उड़ना, सफेद होना दूर हो जाता है। सर्दी,जुकाम जैसे रोगों में लाभ होता है तथा अमृत रस पान होने से उसके फलस्वरूप होने वाले सभी लाभ साधक को प्राप्त होते है।
सावधानियाँ :
इसका अभ्यास सुबह खाली पेट उठकर करना सर्वोत्तम है।
जीभ को धीरे धीरे चारो तरफ घुमाना चाहिए।
इस दौरान मुँह में बनने वाले रस को अंदर ही निगलना चाहिए।
मुद्रा अभ्यास के प्रारम्भिक दिनों में तेजी से अभ्यास नही करना चाहिए।
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