16 Jun 2016

तड़ागी मुद्रा

तड़ागी  मुद्रा 
इस मुद्रा का वर्णन  घरेण्डसंहिता  में किया गया है।  
विधि :
" उदरं पश्चिमोत्तानं कृत्वा च तडागाकृति।।" 
पश्चिमोत्तान आसन को लगाकर उदर को तड़ाग (तालाब) की आकृति प्रदान  करने के लिए पेट को पीछे की तरफ खींचकर  कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास करना ही तड़ागी मुद्रा  है. 
अर्थात पश्चिमोत्तासन आसान में बैठकर उड्डयान बंध लगाकर मूल बांध लगाएं उसके बाद जालंधर बांध लगाकर यथासम्भव कुम्भक करें और वापस आ जाएं  इसे ही तड़ागी मुद्रा कहते हैं

लाभ : 
"तड़ागी सा परा मुद्रा जरामृत्यु विनाशिनी।।"
यह मुद्रा जरा और मृत्यु  का नाश करने वाली है।  
विस्तारपूर्वक वर्णन करने पर कहा जा सकता है  कि यह मुद्रा शरीर के समस्त रोगों को नाश कर के उसे निरोग बनाती है,किसी भी प्रकार की व्याधि शरीर में नहीं रहती है।स्वभाव से ही  पेट सम्बन्धी रोग  कब्ज़ , अपच, मदाग्नि , शुगर, पीलिया  फेफड़ों के रोग,  मूत्र सम्बन्धी रोग, कमर व् गर्दन का दर्द  दूर हो जाता है इसके साथ ही यह मुद्रा चित्त पर अंकित जन्म जन्मांतर के संस्कारों को भी हटाती है।  जिस से साधक अभय हो जाता है उसके अंदर मृत्यु का भय दूर हो जाता है।  
सावधानियां :- 
खाली पेट अभ्यास करें। 
 गुरु के सानिध्य में करें।  
पेट का ऑपरेशन हुआ हो तो  न करें. 
पहले पश्चिमोत्तान आसान का अभ्यास कर लें 
कमर दर्द, कन्धों का दर्द, गर्दन का दर्द  हो तो अभ्यास न करें।
 तीनो बंधों का अभ्यास कर लें।


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