केवल कुम्भक
प्राणायाम के तीनो अंगो रेचक,पूरक,कुम्भक के आधार पर कुम्भक के दो प्रकार हठयोगप्रदीपिका में कहे गए है- सहित व केवल।और यह भी कहा गया है की केवल कुम्भक की सिद्धि से पहले सहित कुम्भक का लगातार अभ्यास करना चाहिए।
विधिः
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की।-
"रेचकं पुरकम मुक्त्वा सुखं यद्वायुधारणम्।
प्राणायामोअयमित्युक्तः स वै केवलकुम्भकः।।"
रेचक पूरक के बिना जो वायु धारण होती है उसे ही ग्रहण करना ,इस प्रकार के प्राणायाम को केवल कुम्भक कहते है।
अर्थात इस कुम्भक में ना तो श्वांस लेने का प्रयत्न करना है और न ही श्वांस निकालने का प्रयत्न करना है। जो भी वायु स्वतःअंदर आये और स्वतः ही बाहर जाये उसी वायु को ग्रहण करना व निकालना है।
लाभ :लाभ के सम्बन्ध हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है -
"कुम्भके केवले सिद्धे रेचपुरकवर्जिते।
न तस्य दुर्लभं किच्चित्त्रिषू लोकेषु विद्यते।।"
रेचक पूरक से रहित ये केवल कुम्भक सिद्ध हो जाने पर उस साधक के लिए तीनो लोको में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
"शक्त केवलकुम्भेन यथेष्टं वायुधारणात्
राजयोगपदं चापि लभते नात्र संशयः।।"
केवलकुंभक से साधक इच्छानुसार वायुधारण करने में सक्षम हो राजयोग पद भी प्राप्त कर लेता है। इसमें बिल्कुल भी संदेह नहीं है।
सावधानियाँ :
पहले तीनो बन्धो का अभ्यास कर ले।
केवल कुम्भक से पहले सहित कुम्भक का अभ्यास करना चाहिए।
जिसे अस्थमा की बीमारी हो इस कुम्भक को न करे।
ह्रदय रोगी भी इसका अभ्यास न करे।
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