7 Aug 2015

त्राटक क्रिया

त्राटक क्रिया 
त्राटक क्रिया षट्कर्म की पाँचवी क्रिया है वस्तुतः त्राटक बाहय ध्यान है।
हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है की
निरीक्षेन्निश्चलदृशा  सूक्ष्मलक्ष्यं समाहितः। 
अश्रुसम्पातपर्यन्तमाचार्यस्त्राटकं स्मृतम्।।
निश्चल हो स्थिर दृष्टि से किसी सूक्ष्म लक्ष्य को लगातार तब तक देखना जब तक की आँखों से 
आंसू बाहर न आ जाये। इस क्रिया को ही त्राटक कहते है
घेरण्ड संहिता  में भी कहा गया है कि पलको को बिना झपकाये आँखों से आंसू आने तक 
किसी सूक्ष्म द्रव्य को देखना ही त्राटक है। 
दत्तात्रेय संहिता  में भगवान दत्तात्रेय भी कहते है की नयनो को स्थिर कर किसी सूक्ष्म द्रव्य को 
एकटक आंसू गिरने तक देखते रहने का नाम ही त्राटक है
त्राटक का ज्यादा विस्तार इन ग्रंथो में नहीं है। अन्य ग्रंथो में भीं त्राटक गुप्त रखने के लिए कहकर
 कुछ नहीं कहा गया है। वैसे भी यह स्वम की अनुभूतिक क्रिया है।
 इस कारण नए साधको के सामने प्रारम्भ में अनेक समस्याएं आती है जिनका निदान नहीं हो पता। और  इस कारण साधक अभ्यास छोड़ देता है। वास्तव में त्राटक के लिए दीया,मोमबत्ती ही लक्ष्य नहीं हो सकता इसमें तो कोई भी सूक्ष्म द्रव्य लक्ष्य हो सकता है। त्राटक सिद्धो की,महात्माओ की क्रिया थी जो साधरणतयः वनो में ही रहते थे। अगर हम स्वम् ही सोचे की क्या आधुनिक लक्ष्य जैसे दीया,मोमबत्ती आदि की व्यवस्था वहाँ होती होगी। वहाँ तो चाँद,तारे,फूल,पत्तियां,पेड़ के तने पर बना कोई निशान,पत्थर की शिला पर बना कोई निशान,पत्थर का कोई टुकड़ा,किसी पक्षी का घोंसला,दूर से गिरते हुऐ जल का कोई बिंदु या सूक्ष्म कण आदि असंख्य सूक्ष्म प्राकृतिक पदार्थ लक्ष्य होगे। वहाँ पर लक्ष्य से दूरी बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती होगी। क्योकि वे महान पुरूष टुकड़ो में जैसे आधा घंटा,एक घंटा अर्थात सीमा में अभ्यास नहीं करते थे। उनका अभ्यास दिनों,महीनो,तक चलता था त्राटक में दूरी अभ्यास के समय पर निर्भर करती है। जैसे कोई त्राटक का अभ्यास आधा घंटा या एक घंटा कर रहा है तो उसे करीब साढ़े तीन फ़ीट की दूरी पर अपने लक्ष्य को रखना चाहिए। साधारणतः उन दिनों में साधारण व्यक्ति भी शारीरिक व मानसिक इतने कमजोर नहीं थे जितने आज है।  इसी  कारण वे लोग किसी भी लक्ष्य पर खुद को आसानी से केंद्रित कर लेते थे तथा लम्बे समय तक बैठकर सभी नाड़ियो को शांत करके त्राटक क्रिया को सिद्ध कर लेते थे।
परन्तु वर्तमान परिदृश्य पूर्ण रूपेण बदल चूका है अतः उसी परिदृश्य में त्राटक क्रिया का स्वरूप भी बदला है। आजकल त्राटक दीये पर,मोमबत्ती पर या किसी बिंदु पर जो विशेषतः त्राटक के लिए ही बनाया जाता है किया जाता है।
आजकल आँखों के बराबर ऊचाई पर लगभग साढ़े तीन फीट की दुरी पर दीया ,मोमबत्ती रखकर उसे एकटक बिना पलक झपकाये देखना ही त्राटक है 

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