नौलि क्रिया
उदर को दायें से बायें और बायें से दायें धुमाने की क्रिया को नौलि क्रिया कहते है। वास्तव में इसमें उदर को दायें से बाये या बाये से दायें नहीं धुमाया जाता है। बल्कि उदर में अवस्थित दो मोटी नाड़िया को दायी बायीं और धूमाते हुए स्थिति बदलते है। जिसे देखने से यही लगता है की उदर धुमाया जा रहा है। घेरण्ड संहिता में इस क्रिया को ही लौलिकी क्रिया कहा गया है।
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की
अमन्दावर्तवेगेन तुन्दं सव्यापसव्यतः।
नतांसो भ्रामयेदेषा नौलि सिद्धेः प्रचक्ष्यते।।
दोनों जंघाओं पर हाथ रखकर थोड़ा आगे झुककर उदर को दाहिने से बाये व बाये से दाहिने और तेज
गति के भँवर के समान घुमाते है। इस क्रिया को ही नौलि क्रिया कहते है।
हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड संहिता में नौलि क्रिया का अधिक विस्तार से वर्णन नहीं है। सिर्फ एक श्लोक का ही संकेत मात्र है।
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