6 Aug 2015

नौलि क्रिया के लाभ

नौलि क्रिया के लाभ 
मन्दाग्निसंदीपनपाचनादिसंधायिकानन्दकरी सदैव। 
अशेषदोषामयशोषणी च हठक्रियामौलिरियं च नौलि।।
यह नोली क्रिया जठर अग्नि को प्रदीप्त कर पाचन क्रिया को तेज करती है। यह अनेक रोगो व दोषो को दूर करती है। समस्त प्रकार के रोगो को दूर करके नोली क्रिया देहानल में वृद्धि करती है। 
देहानल अर्थात देह की अनल (अग्नि)। शरीर की यह अग्नि ही सम्पूर्ण शरीर की ऊर्जा है। जो प्रत्येक रोग के शरीर की रक्षा करती है। और शरीर की सभी क्रियाओ जैसे पाचन क्रिया,तन्त्रिका तंत्र की क्रिया,मस्तिस्क की क्रियाओ को करती है। 
इस क्रिया के अधिक अभ्यास से कुण्डलिनी जागरण होता है इसलिए इसे शक्तिचालिनी भी कहते है। नौलि क्रिया का  दो घडी तक अभ्यास करने से एक बड़ा ही विचित्र प्रकार का योगबल शरीर में पैदा होता है,जिससे वस्ति क्रिया व् शंखप्रक्षालन स्वतः ही सिद्ध हो जाती है। और शरीर विकार रहित शुद्ध हो कांतिमान होकर चमकने लगता है। 
विश्लेषण :नोली क्रिया का षट्कर्म में विशेष स्थान है। यह नोली क्रिया अन्य कई योगिक क्रियाओ में भी सहायक है कुछ साधको का मानना है की नोली क्रिया व अग्निसार क्रिया दोनों के समान लाभ है। क्योकि नोली प्रारम्भ में करना थोड़ा मुश्किल है ,अतः आम साधक अग्निसार का अभ्यास नोली की जगह कर सकते है। लेकिन अगर साधक को आध्यात्मिक अनुभव चाहिये तो उसे नोली क्रिया को अवश्य सीखनी चाहिए। नोली क्रिया साधक को ज्ञान प्राप्त कराने में बड़ी उपयोगी है। ज्ञान जिससे स्वम के भीतर, बाहर से लेकर प्रकृति के सम्पूर्ण रहस्य तक उसके सामने आ जाते है। ब्रह्माण्ड के सभी जड़ चेतन के
 रहस्य उसके सामने स्पष्ट हो जाते  है। अविद्या का नाश हो जाता है। जिस पदार्थ का जो स्वरूप है वो उसी रूप में सामने आ जाता है। जिसकी सहायता से योगी,योग की अंतम अवस्था(समाधि) तक पहुंच जाता है। इसके फल में बड़ा गोपनीय तथ्य कहा भी गया है,की दो घडी( अर्थात लगभग आठ से नौ घंटे लगातार )तक इसका अभ्यास करने से विचित्र योगबल शरीर में पैदा होता है।
विचित्र अर्थात जिसका कोई रैखिक,लेखीक,शाब्दिक,वाचिक चित्रण करना संभव न हो।
योगबल अर्थात योग का बल ,योग की शक्ति। सामान्य अंगो द्वारा असामन्य कार्य करने की क्षमता शरीर में पैदा होना ही योग का बल है।  
सावधानियां :
नोली क्रिया को खली पेट करना चाहिए। 
गुरु के निर्देश में करना चाहिए। 
दिखावे के लिए कही भी इसका अभ्यास न करे। 
बहुत अधिक अभ्यास प्रारम्भ में एक साथ न करे। 
ब्रहमचर्य का पालन करे। 

1 comment:

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