मातङ्गिनी मुद्रा
मातङ्गिनी मुद्रा मातंग अर्थात हाथी के समान बल प्राप्त कराने वाली यह मुद्रा है
इस मुद्रा का वर्णन घेरण्ड संहिता में किया गया है
"कण्ठमग्ने जले स्थित्वा नासाभ्यां जलमाहरेत।
मुखान्नि रगमयेत्पश्चात पुनर्वक्त्रेण चाहरेत।
नासाभ्यांरेचयेतपश्चात कुर्यादेवं पुनः पुनः।"
मुखान्नि रगमयेत्पश्चात पुनर्वक्त्रेण चाहरेत।
नासाभ्यांरेचयेतपश्चात कुर्यादेवं पुनः पुनः।"
किसी भी जगह कंठ पर्यत जल में निमग्न हो कर सर्वप्रथम नासाग्रो से जल को ग्रहण कर
मुख से बाहर निकालना उसके पश्चात पुनः मुख से जल को ग्रहण कर के नासाग्रो से
बाहर निकालना तथा बार बार इसी क्रिया को करते रहना ही मातङ्गिनी मुद्रा है।
मुख से बाहर निकालना उसके पश्चात पुनः मुख से जल को ग्रहण कर के नासाग्रो से
बाहर निकालना तथा बार बार इसी क्रिया को करते रहना ही मातङ्गिनी मुद्रा है।
लाभ :
" मातङ्गिनी परा मुद्रा जरा मृत्युविनाशिनी। "
यह मातङ्गिनी मुद्रा साधक की जरा व मृत्यु का नाश करने वाली है।
इस मुद्रा का साधक सदा युवा ही बना रहता है
इस मुद्रा का साधक सदा युवा ही बना रहता है
"कुर्यान्मातङ्गिनी मुद्रां मातङ्ग ईव जायते। "
मातङ्गिनी मुद्रा का अभ्यास करने वाला साधक हाथी के सामान बल वाला हो जाता है।
"यत्र तत्र स्थितो योगी सुखमत्यन्तमुश्नुते।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन साधयेन मुद्रिकां पराम।।"
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन साधयेन मुद्रिकां पराम।।"
इस मुद्रा का साधक चाहे किसी भी स्थान पर रहे इसकी सिद्धि के फलस्वरूप वह
परमसुख को प्राप्त कर लेता है। इसलिए सुख की इच्छा रखने वाले व बल की इच्छा
रखने वाले साधकों को सर्वप्रकार से प्रयत्न करके इस मुद्रा की साधना करनी चाहिए।
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करें।
गुरु द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करें।
जल शुद्ध हो।
एकांत स्थान में यह मुद्रा करें।
परमसुख को प्राप्त कर लेता है। इसलिए सुख की इच्छा रखने वाले व बल की इच्छा
रखने वाले साधकों को सर्वप्रकार से प्रयत्न करके इस मुद्रा की साधना करनी चाहिए।
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करें।
गुरु द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करें।
जल शुद्ध हो।
एकांत स्थान में यह मुद्रा करें।
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