21 Aug 2015

उत्कट आसन

उत्कट आसन 
इस आसन को कुर्सी आसन भी कहते है बड़ा ही आसान सा आसन है उत्कट आसन ,परन्तु है बहुत ही उपयोगी। लगभग सभी उम्र के व्यक्ति इस आसन का अभ्यास कर सकते है परन्तु बुजुर्गो के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी है। उत्कट जिसका अर्थ शक्तिशाली होता है अर्थात शक्तिशाली आसन। कहा जा सकता है की ये आसन शरीर को और विशेषकर पैरो को शक्ति प्रदान करता है 
विधि:
सर्वप्रथम सावधान मुद्रा में खड़े होते है फिर पैरो को मिलकर या blance बनाने के लिए करीब छः इंच की दूरी लेकर दोनों हाथो को कंधो की बराबर में अर्थात जमीन के समानान्तर सामने लाकर पूरक करके धुटनो को मोड़कर उस अवस्था में जाते है जैसे कुर्सी पर बैठते है। यथासंभव उसी अवस्था में कुंभक करते है और फिर रेचन करते हुए धीरे धीरे वापस आ जाते है। इस प्रकार इस आसन को रोजाना तीन बार करते है। 
लाभ :जैसा की देखने से ही अनुभव होता है इस आसन में धुटनो को मोड़कर शरीर का सम्पूर्ण भार पैरो पर रखना है। इसी कारण से यह आसन सर्वाधिक लाभ पैरो को ही देता है। पैरो की लगभग सभी बीमारिया इस आसन से ठीक होती है जैसे -पैरो का अधिक वजन न उठाना,धुटनो का सही काम न करना ,धुटनो में दर्द रहना,धुटनो को मोड़ने में दर्द होना,पिण्डलियों में दर्द होना ,अधिक चलने पर पैरो में दर्द होना,पैरो में अकड़ाहट होना,जंघाओं में दर्द रहना आदि। जिन व्यक्तियों के धुटने लगभग जाम हो चुके है उनको भी कुर्सी आसन से ठीक किया जा सकता है। नितम्बो में दर्द रहना,उनकी हड्डियों का सही काम न करना तथा उन पर अतिरिक्त चर्बी भी इस आसन से कट जाती है। जंघाओं की मांसपेशियों की सक्रियता से लाभ यह मिलता है की इस आसन के अभ्यास से वीर्य पात नहीं होता ,वीर्य में दृढ़ता आती है जो ब्रहमचर्य में विशेष सहायक है,मूत्र सम्बन्धी समस्या जैसे बार बार मूत्र आना,मूत्र का रुक रुककर आना आदि समस्याओ का निदान हो जाता है और गुदा सम्बन्धी रोग जैसे बावाशीर, भगंदर भी ठीक हो जाते है। महिलाओ की मासिक धर्म सम्बन्धी समस्या ठीक हो जाती है,गर्भधारण में सहायक होता है। यह रीढ़ की हड्डी को मजबूत करता है और थायरॉयड ग्रंथि को सक्रिय  करता है जिसका पर्याप्त प्रभाव व्यक्ति के दिमाग पर पड़ता है और उसका दिमाग ज्यादा जागरूकता से निर्णय लेता है। अतः यह तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करता है।जिस कारण से शरीर का काँपना,हाथ पैर का काँपना ठीक हो जाता है। इनके साथ ही यह उदर सम्बन्धी समस्याओ जैसे कब्ज,अपच,गैस का बनना ,उदर में भारीपन रहना आदि समस्याओ का भी निदान करता है। यह लगभग सभी वायु दोषो को दूर करता है वायु के सम अवस्था में आने से गठिया,जोड़ो का दर्द,कमर का दर्द,कंधो का दर्द,गर्दन का दर्द आदि ठीक हो जाते है। इस आसन के अभ्यास से वायु दोष दूर होता है, जिससे शरीर की stiffness दूर हो जाती है और शरीर में लचक आती है। अध्य्यात्मिक दृष्टि से यह आसन मणिपुर,स्वाधिष्ठान,मूलाधार ,अनाहत व् विशुद्धि चक्र को प्रभावित करता है
सावधानियाँ:
खाली पेट अभ्यास करे।
ह्रदय रोगी अधिक देर तक आसन में कुम्भक न करे।
जिन्हे चक्कर आने की बीमारी है वे हल्का अभ्यास करे।
सिर दर्द में इस आसन को न करे पहले थोड़ा अनुलोम विलोम कर ले।
पैरो का आपरेशन हो या कोई चोट लगी हो तो इसका अभ्यास न करे या हल्का करे।
गर्दन दर्द में गर्दन को बहुत आगे ना झुकाये।
निम्न रक्त चाप हो तो पहले थोड़ा कपालभाति करे फिर इसका अभ्यास करे। 

1 comment:

  1. Very nice Manpj. I find something unique in your blog not known to me earlier. Kep it up and start the Yoga classes. That will be more beneficial

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