वृक्षासन
वृक्ष अर्थात पेड़ इसमें शरीर को पेड़ की तरह स्थिर करते है। अगर हम थोडा सा गहनता से विचार करे की वृक्षासन क्या है? तो स्पष्ट हो जायेगा। जिस प्रकार वृक्ष की जड़ ज़मीन में होती है और शेष हिस्सा ऊपर होता है। उसी प्रकार एक पैर को ज़मीन पे इस प्रकार रखते है जैसे पेड़ की जड़ होती है और शरीर का ऊपरी हिस्सा पेड़ के समानस्थिर रखते है.वृक्ष का गुण है,कि वह स्थिर होता है।अपने सम्पुर्ण जीवन में स्थिरता ही उसका गुण होता है। असंख्य बार तूफान आते है।आंधिया आती है,परन्तु वृक्ष उन सबको शान्ति के साथ सहन करता है,और स्थिर रहता है। इसी गुण के लिए वृक्षासन किया जाता है।अगर बात अध्यात्म कि जाये तो व्यक्ति को मानसिक स्थिरता की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। व्यक्ति का मन स्वभाव से बड़ा चंचल होता है, जिसे वृक्ष की तरह स्थिर करने के लिये वृक्षासन करते है।
विधि :सर्वप्रथम सावधान मुंद्रा में खड़े होते है फिर एक पैर को उठाकर उसके पंजे को दुसरे पैर कि जंघा के मूल में सटाकर इस प्रकार लगाते है कि पैर कि एड्डी गूदा मूल के पास आ जाए। फिर पूरक करके दोनो हाथो को ऊपर आसमान की तरफ ले जाकर दोनों हथेलियो को आपस में नमस्कार मुद्रा की तरह मिलाते है . यथासम्भव कुंभक करते है और रेचन करते हुये वापस आते है इसी प्रकार दुसरे पैर से भी करते है इस आसन को दो या तीन बार करते है
लाभ : वृक्षासन अनेक प्रकार से शारिरिक व मानसिक लाभ देता है। इस आसन से शारिरिक व मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। क्योंकि यह एक ध्यानात्मक आसन है,तो क्या इसके शारिरिक लाभ नहीं है??नहीं ऐसा नहीं है, इसके शारिरिक लाभ भी बहुत है। जैसे; यह पैरो को मज़बूत करता है, पैरो में स्थिरता देता है, पिन्डिलियो के दर्द को दूर करता है, घुटनो के दर्द दुर होते है, जघाये मज़बूत होती है, हाथो के कंधो के जोड़ मजबुत होते है, उदर की मांसपेशियों में खिंचाव आता है और प्राणवायु भी नाड़ियों को अधिक सक्रियता के लिये बाध्य करती है जिससे कब्ज अपच जैसी उदर सम्बन्धी समस्या दुर हो जाती है। वायु अधोमुख से न चलकर स्वतः अपने मार्ग से चलने लगती है। पुरे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव आने से यह आसन बच्चो में हाइट भी बढ़ाता है। पैर का पंजा,जांघ पर रखकर,एड़ी को उपस्थ व् गुदा के पास सटकाकर रखने से उपस्थ संबंधी रोग जैसे वीर्यपात,शीघ्रपतन, बहुमूत्र,पेशाब में जलन ,बूद बूद पेशाब आना जैसे रोग, और गुदा से अपानवायु के स्वतः प्रवाह से भगदर,बावासीर जैसे रोग भी ठीक हो जाते है
यह ह्रदय को भी को भी सकारात्मकता प्रदान करता है। हाथों को जब नमस्कार मुद्रा में ऊपर करते है,और कुम्भक करते है, तो प्राण वायु हाथो की सभी नसों,नाड़ियो को शुद्ध करती है और उनसे प्राण वायु शुद्ध या अशुद्ध रक्त लाती या ले जाती है, हाथो के उपर होने के कारण सभी नसों,नाड़ीयों से ह्रदय तक रक्त का प्रवाह स्वतः ही होने लगता है जिससे ह्रदय को अपना कार्य करने में कुछ सहायता मिल जाती है और वह अधिक सक्रियता से कार्य करता है अतः यह आसन ह्रदय के लिए भी लाभदायक है
खली पेट ही अभ्यास करे।
गुरु के निर्देशन में करे।
जिन्हे blance बनाने में दिक्क़त हो वो पहले एक पैर पर खड़ा होने का अभ्यास करे।
जिनके पैर या घुटने में चोट लगी हो या कोई दिक्क़त हो वे यह आसन न करे।
गर्भवती महिला यह आसन न करे।
अनिंद्रा,सरदर्द या रक्त चाप के रोगी उपरोक्त विधि से आसन करे।
वृक्षासन से क्योकि सम्पूर्ण शरीर में खिचाव आता है अतः यह आसन शरीर से
चर्बी घटाने में भी लाभदायक है
चर्बी घटाने में भी लाभदायक है
विशेषकर उदर,कमर व नितम्बो की चर्बी इस आसन से शीध्रता से धटती है जिससे शरीर की कुरूप शरीरिक संरचना भी व्यवस्थित होकर आकर्षक लगने लगती है।
अब अगर मानसिक लाभ की बात करे तो, मन को स्थिर करने में वृक्षासन बहुत सहयक है। इस आसन का अभ्यास करने वाले साधक की चंचलता तो खत्म होती ही है उसके साथ ही दिमाग पर नियंत्रण करने की क्षमता भी बढ़ती है। जिससे तंत्रिका तंत्र को बेहतर सूचनाये प्रेषित करने में सहायता मिलती है कुछ साधको ने तो वृक्षासन को लम्बे मन्त्र जाप व ध्यान के लिए भी प्रयोग करने के लिए कहा है। उनका कहना है की मन स्वभाव से बड़ा ही चंचल है जो अनेक प्रयत्नो के बाद भी नियंत्रण में नहीं आता है इस आसन में मन्त्र जाप करते हुए मन बहुत हद तक नियंत्रित हो जाता है जिसका लाभ ये होता है की साधक जल्दी ही ध्यानस्थ होने लगता है परन्तु इस आसन में लम्बा मन्त्र जाप या ध्यान नहीं किया जा सकता है। इसका तरीका यही है की पहले मन की चंचलता के लिए पहले कुछ देर वृक्षासन में अभ्यास करे उसके बाद किसी आसन में बैठकर लम्बा अभ्यास करे।
इस आसन के कुछ कोम्प्लिकेशन भी कहे गए हैजैसे की किसी को नींद न आने की समस्या हो,सर में दर्द,शरीर का कापना या रक्त चाप की समस्या हो तो इस आसन का अभ्यास न करे।
परन्तु हमने अनेक प्रयोग किये जिनमे वृक्षासन की इन नकारात्मकताओ का विश्लेषण भी किया तथा कुछ थोड़े परिवर्तनों के साथ इस आसन को किया तो पाया की उपरोक्त बीमारियो में भी यह आसन बड़ा ही लाभदायक है
जैसे अगर किसी व्यक्ति को नींद नहीं आती है तो उसे आँख बंद करके ध्यान को आज्ञा चक्र पर लगाना चाहिए।और श्वांस को सामान्य चलने देना चाहिए ,जितनी देर आसन में रह सकते है रहे फिर वापिस आये। इस प्रकार दोनों पैरो से दो दो बार करे,अनिंद्रा की समस्या दूर हो जाएगी।
अगर साधक को सरदर्द या चक्कर आते हो,तो भी आँखे बंद करके ही इस आसन का अभ्यास करे और श्वांस की गति को सामान्य रखे और ध्यान को आज्ञा चक्र पर लगाए।
हाई या लो ब्लडप्रेशर में भी आँखे बंद रखे और ध्यान अनाहत चक्र अर्थात ह्रदय पर लगाये। श्वांस की रेचन पूरक की क्रिया करते रहे विशेष ध्यान रखने की बात यह है की इसमें अगर ज्यादा चक्कर आ रहे है या घबराहट हो रही है तो पहले कुछ देर अनुलोम विलोम का अभ्यास करे। या फिर लेटकर ऐसे ही अभ्यास करे
जैसे खड़े होकर करते है।
आध्यात्मिक विश्लेषण में यह आसान मूलाधार,स्वाधिष्ठान,अनाहत चक्र को प्रभावित करता है। जिससे व्यक्ति में सुघने की, स्वाद चखने की तथा दिव्य स्पर्श की क्षमता बढ़ जाती है.व्यक्ति को दिव्य रसो की सुगंध आने लगती है ,दिव्य रसो का स्वाद आने लगता है और दिव्य स्पर्श का अनुभव होने लगता है। यह बड़ा ही गुप्त विश्लेषण है मात्र संकेत ही किया जा सकता है। ये अनुभूतियाँ होती तो है मगर है बड़ी ही दुर्लभ। अतः जो व्यक्ति स्वास्थ्य के लिए योग कर रहे है उन्हें उपरोक्त तथ्य पर ध्यान न देकर योग का अभ्यास करना चाहिये।
सावधानियाँ : अब अगर मानसिक लाभ की बात करे तो, मन को स्थिर करने में वृक्षासन बहुत सहयक है। इस आसन का अभ्यास करने वाले साधक की चंचलता तो खत्म होती ही है उसके साथ ही दिमाग पर नियंत्रण करने की क्षमता भी बढ़ती है। जिससे तंत्रिका तंत्र को बेहतर सूचनाये प्रेषित करने में सहायता मिलती है कुछ साधको ने तो वृक्षासन को लम्बे मन्त्र जाप व ध्यान के लिए भी प्रयोग करने के लिए कहा है। उनका कहना है की मन स्वभाव से बड़ा ही चंचल है जो अनेक प्रयत्नो के बाद भी नियंत्रण में नहीं आता है इस आसन में मन्त्र जाप करते हुए मन बहुत हद तक नियंत्रित हो जाता है जिसका लाभ ये होता है की साधक जल्दी ही ध्यानस्थ होने लगता है परन्तु इस आसन में लम्बा मन्त्र जाप या ध्यान नहीं किया जा सकता है। इसका तरीका यही है की पहले मन की चंचलता के लिए पहले कुछ देर वृक्षासन में अभ्यास करे उसके बाद किसी आसन में बैठकर लम्बा अभ्यास करे।
इस आसन के कुछ कोम्प्लिकेशन भी कहे गए हैजैसे की किसी को नींद न आने की समस्या हो,सर में दर्द,शरीर का कापना या रक्त चाप की समस्या हो तो इस आसन का अभ्यास न करे।
परन्तु हमने अनेक प्रयोग किये जिनमे वृक्षासन की इन नकारात्मकताओ का विश्लेषण भी किया तथा कुछ थोड़े परिवर्तनों के साथ इस आसन को किया तो पाया की उपरोक्त बीमारियो में भी यह आसन बड़ा ही लाभदायक है
जैसे अगर किसी व्यक्ति को नींद नहीं आती है तो उसे आँख बंद करके ध्यान को आज्ञा चक्र पर लगाना चाहिए।और श्वांस को सामान्य चलने देना चाहिए ,जितनी देर आसन में रह सकते है रहे फिर वापिस आये। इस प्रकार दोनों पैरो से दो दो बार करे,अनिंद्रा की समस्या दूर हो जाएगी।
अगर साधक को सरदर्द या चक्कर आते हो,तो भी आँखे बंद करके ही इस आसन का अभ्यास करे और श्वांस की गति को सामान्य रखे और ध्यान को आज्ञा चक्र पर लगाए।
हाई या लो ब्लडप्रेशर में भी आँखे बंद रखे और ध्यान अनाहत चक्र अर्थात ह्रदय पर लगाये। श्वांस की रेचन पूरक की क्रिया करते रहे विशेष ध्यान रखने की बात यह है की इसमें अगर ज्यादा चक्कर आ रहे है या घबराहट हो रही है तो पहले कुछ देर अनुलोम विलोम का अभ्यास करे। या फिर लेटकर ऐसे ही अभ्यास करे
जैसे खड़े होकर करते है।
आध्यात्मिक विश्लेषण में यह आसान मूलाधार,स्वाधिष्ठान,अनाहत चक्र को प्रभावित करता है। जिससे व्यक्ति में सुघने की, स्वाद चखने की तथा दिव्य स्पर्श की क्षमता बढ़ जाती है.व्यक्ति को दिव्य रसो की सुगंध आने लगती है ,दिव्य रसो का स्वाद आने लगता है और दिव्य स्पर्श का अनुभव होने लगता है। यह बड़ा ही गुप्त विश्लेषण है मात्र संकेत ही किया जा सकता है। ये अनुभूतियाँ होती तो है मगर है बड़ी ही दुर्लभ। अतः जो व्यक्ति स्वास्थ्य के लिए योग कर रहे है उन्हें उपरोक्त तथ्य पर ध्यान न देकर योग का अभ्यास करना चाहिये।
खली पेट ही अभ्यास करे।
गुरु के निर्देशन में करे।
जिन्हे blance बनाने में दिक्क़त हो वो पहले एक पैर पर खड़ा होने का अभ्यास करे।
जिनके पैर या घुटने में चोट लगी हो या कोई दिक्क़त हो वे यह आसन न करे।
गर्भवती महिला यह आसन न करे।
अनिंद्रा,सरदर्द या रक्त चाप के रोगी उपरोक्त विधि से आसन करे।
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