मयूरासन
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है मयूर अर्थात मोर आसन। इसमें शरीर को इस प्रकार रखते है जैसे की मोर होता है। बड़ा ही प्रभावशाली आसन है। जिस प्रकार मोर भारी से भारी भोजन को भी आसानी से पचा लेता है,उसी प्रकार इस आसन के अभ्यास से व्यक्ति की पाचन शक्ति बहुत ही मजबूत हो जाती है। कहा तो यहाँ तक जाता है की मयूरासन को सिद्ध करने वाले साधक में जहर को भी पचाने की क्षमता आ जाती है। पाचन क्रिया सम्बन्धी समस्त रोग इस आसन के अभ्यास से दूर हो जाते है। यह आसन बड़ा ही कठिन आसन है। इसे बड़ी सावधानी से गुरु के दिशा निर्देशानुसार ही करना चाहिए अन्यथा फायदे की जगह इसके नुक्सान हो जाते है।
विधि :
सर्वप्रथम पेट के बल लेटकर गहरे लम्बे श्वांस लेकर शरीर को सामान्य करते है। फिर पेट को जमीन से ऊपर उठकर उसके निचे हाथो की हथेलियों को रखकर दोनों कोहनियो को नाभि के दोनों और सटाकर शरीर का संपूर्ण भार दोनों हाथो पर छोड़ते हुए सम्पूर्ण शरीर को जमीन से ऊपर उठाते है अर्थात सर व पैरो को ऊपर उठाते है। जैसे मोर के दोनों पैर जमीन पर होते है और आधा शरीर पैरो से आगे व आधा शरीर पैरो से पीछे होता है ,वैसे ही साधक का आधा शरीर हाथो से आगे व आधा शरीर हाथो से पीछे होता है।सम्पूर्ण शरीर जमीन से ऊपर उठा हुआ होता है जमीन पर केवल हथेलिया होती है और उन्ही पर सम्पूर्ण भार होता है।प्रारम्भ में इसमें blance बनाने में बहुत परेशानी होती है ,इसके लिए शुरू में जब पैरो को उठाते है तो पैरो को आपस में मिलाकर मोड़ लेते है,और फिर धीरे धीरे अभ्यास से सीधा करते है। इसी प्रकार सर को प्रारम्भ में थोड़ा निचे की तरफ रखते है फिर धीरे धीरे अभ्यास से सिर भी ऊपर की तरफ उठाते है आँखों को एक बिंदु पर स्थिर करते है।
लाभ :
पेट के लिए किये जाने वाले आसन में मयूर आसन मुख्य आसन है। यह आसन पेट की समस्त नसों,नाड़ियो और अंगो को क्रियाशील करता है उनकी सक्रियता बढ़ाता है।यह आंतो को,लिवर को,अग्नाशय को,अमाशय को मजबूत करता है।कब्ज,अपच,मंदाग्नि,गैस जैसी समस्याओ को दूर करता है।शुगर के लिए यह आसन विशेष लाभ देता है।अपान वायु अपने मार्ग से बहने लगती है। जठर अग्नि इतनी प्रदीप्त हो जाती है की व्यक्ति के कुछ भी खाने पर वह आसानी से पच जाता है।पेट का कोई भी रोग इस आसन के अभ्यास से नहीं होता है।पेट की खींची गयी मांसपेशियों का प्रभाव मुख पर,किडनी पर व लगभग सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है।जिससे मुँख पर तेज आता है।शरीर के अपशिष्ट पदार्थ मूत्र द्वारा बहार निकलने लगते है,किडनी में इकक्ठा नहीं होते है। इस कारण किडनी और अच्छे से कार्य करने लगती है और इसका कोई रोग भी नहीं होता। गुप्तांगो की मांसपेशियों का खिचाव भी होता है जिससे प्रोस्टेट ,बार बार मूत्र आना,बूंद बूंद मूत्र आना ,धातु पतन जैसी समस्याएं दूर हो जाती है।इन्द्रियों पर नियंत्रण का यह एक विशेष आसन है जिससे यह ब्रह्मचर्य में भी सहायता करता है।
शरीर का भार कोहनियो पर रखने से हाथ मजबूत होते है।विशेषकर कोहनियो व हथेलियों के जोड़ मजबूत होते है। कंधो की नाड़ियाँ पुष्ट होती है। फेफड़े अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करने लगते है ,तिल्ली के रोग जैसे बार बार जुकाम होना आदि नहीं होते है,तथा ह्रदय पर भी यह आसन सकारात्मक प्रभाव डालता है।गर्दन मजबूत होती है व उसके विकार दूर होते हैं।
सावधानियाँ :
खाली पेट ही अभ्यास करे।
गुरु के निर्देशन में ही अभ्यास करे।
यह आसन बहुत कठिन आसन है इसके करने में कोम्प्लिकेशन भी बहुत है ,इसलिए इसे बहुत ही ध्यान से करना चाहिए।
इसमें कोहनियाँ बाहर को फिसलती रहती है विशेष ध्यान रखकर कोहनियो को फिसलने से रोकते है। ऐसा न करने पर कई बार पेट में पस बन जाता है।
पेट पर अतिरिक्त दबाव बिल्कुल न बनाये।
पेट कमजोर हो तो यह आसन न करे।
पेट में कोई फोड़ा फुंसी या पेट का आपरेशन हुआ हो तो यह आसन न करे।
आंतो के उतरने (हर्निया)की दिक्कत हो या आंते कमजोर हो तो यह आसन न करे।
फेफड़ो की बीमारी जैसे अस्थमा ,टी बी हो तो यह आसन न करे।
उच्च रक्त चाप,ह्रदय रोग हो तो यह आसन न करे क्योकि इस आसन के
अभ्यास में शरीर पर बहुत दबाव पड़ता है ।
गर्भवती महिला यह आसन न करे।
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