16 Sept 2015

सेतुबंधासन

सेतुबंधासन 
सेतुबंध अर्थात पूल बांधने की तैयारी या पुल बांधने की कला। इसमें शरीर को इस प्रकार रखते है जैसे पुल होता है दोनों सिरो से जुड़ा हुआ बीच से ऊपर उठा हुआ। सेतुबंधासन चक्रासन से अलग व आसान आसन है। अतः जो चक्रासन न कर पाये वे सेतुबंधासन कर सकते है। चक्रासन में लगभग सम्पूर्ण शरीर में तनाव आता है ,परन्तु सेतुबंधासन में विशेषकर कमर,पेट,जंधा व छाती में तनाव आता है।
विधि :
सर्वप्रथम पीठ के बल लेटकर हाथो को कमर की बराबर में रखकर श्वांस को सामान्य करते है फिर दोनों घुटनो को मोड़कर हाथो को कमर के निचे से ले जाकर पैरो की एड़ियो को पकड़कर पूरक करते हुए (श्वांस भरकर ) कंधे व गर्दन को जमीन पर ही रखते हुए कमर व नितम्बो को ऊपर उठाते है। यथासंभव कुम्भक करते हुए उसी अवस्था में रुकते है। फिर रेचन करते हुए वापस आते है।
लाभ :
चक्रासन के समान यह आसन भी कमर व पेट को लाभ पहुचाता है।
यह आसन नितम्बो के जोड़ो को,जंघाओं को व घुटनो को क्रियाशील करता है।नितम्बो की अतिरिक्त चर्बी दूर करता है। पिंडलियों के दर्द दूर करता है। जंघाओं की मांसपेशियों में खिंचाव लाता है। जिससे गुप्तांगो की क्रियाशीलता बढ़ती है। तथा जनेन्द्रिय सम्बन्धी रोग नहीं होते है। यह आसन कमर के उन हिस्सों को सक्रिय करता है जो चक्रासन में नहीं हो पाते है। कंधे को मजबूत करता है। गर्दन व रीढ़ के जोड़ो को विशेष लाभ देता है। थायरॉयड ग्रंथि को क्रियाशील करता है जिससे पाचन क्रिया,शारीरिक मानसिक वृद्धि ,हड्डी मजबूत व तंत्रिका तंत्र विकसित होता है तथा अन्य भी अनेक लाभ शरीर को मिलते है। यह आसन ह्रदय व फेफड़ो को भी मजबूत करता है। पसलियों में लचक लाता है। पेट सम्बन्धी सभी विकार जैसे पेट में भारीपन,वायु दोष,कब्ज,अपच,आंतो सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है और यह जठर अग्नि प्रदीप्त करता है जिससे पाचन क्रिया अच्छी हो जाती है।तथा लिवर,अग्नाशय,आँते व अन्य सभी अंग सही कार्य करते है। 
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करे।
कमर दर्द,गर्दन दर्द हो तो यह आसन न करे।
पेट सम्बन्धी कोई समस्या जैसे आपरेशन वगैरह हुआ हो तो आसन न करे।
प्रारम्भ में नाभि डिगती हो तो यह आसन न करे।


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