15 Sept 2015

नौकासन

नौकासन 
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है नौका अर्थात नाव, आसन अर्थात आकृति।इसमें शरीर को नाव की आकृति में रखते है। इसलिए इसे नौकासन कहते है। नौका का आकार ऐसा होता है की वह पानी में कभी नहीं डूबती उपर ही तैरती रहती है। हमेशा पानी से हल्की रहती है। इसी प्रकार शरीर भी विकारो से शुद्ध होकर हल्का हो जाता है।यह आसन मुख्यतः पेट की लिए है परन्तु शरीर के अन्य अंगो को भी यह लाभ पहुचता है।
नौकासन बड़ा ही सरल आसन है जिससे, इसे सभी लोग कर सकते है।
विधि : 
सर्वप्रथम पीठ के बल लेटते है। दोनों हाथो को कमर की बराबर में रखकर गहरे लम्बे श्वांस लेकर शरीर को सामान्य करते है। फिर पूरक करते हुए (श्वांस भरते हुए )हाथो को जंघाओं के ऊपर रखकर दोनों पैरो व गर्दन को एक साथ बराबर उठाते है। यथासंभव कुम्भक करके उसी अवस्था में रुकते है फिर रेचन करते हुए (श्वांस निकालते हुए ) धीरे धीरे वापिस आते है। प्रतिदिन तीन बार इस आसन का अभ्यास करते है।
लाभ : 
जैसे की नाव पानी के ऊपर तैरती रहती है ,इस आसन का अभ्यासी भी विकारो से ऊपर तैरता रहता है। उसे बीमारियाँ नहीं छु पाती,क्योकि यह आसन पेट के लिए मुख्य है और पेट ही सब बिमारियों कि जड़ है।
शरीर के अंगो पर यह आसन क्या प्रभाव डालता है उसका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है। ....
यह आसन पैरो को लाभ देता है जब पैरो को उपर उठाते है तो समस्त पैरो का नाड़ीतंत्र क्रियाशील होता है ,जिससे पैरो के अनेक विकार जैसे जंघाओं में दर्द ,घुटनो में दर्द,पिंडलियों का दर्द,
पैरो में सूजन आदि दूर हो जाती है
पैरो को उपर उठाकर रखने से नितम्ब की हड्डियाँ व नाडियाँ विकसित होती है और नितम्बो की अतिरिक्त चर्बी दूर हो जाती है।नितम्बो से जुड़े रीढ़ की हड्डी के निचले मनके भी अधिक क्रियाशील होकर अधिक क्षमता से कार्य करते है। कमर व रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है जिससे डिस्क स्लिप की समस्या नहीं होती।
कंधे मजबूत होते है व कंधे की दर्द सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है। गर्दन ऊपर उठाकर रखने से गर्दन का
अच्छा व्यायाम हो जाता है जिससे गर्दन सम्बन्धी विकार दूर होने लगते है।क्योकि यह आसन थायरॉयड ग्रंथि  प्रभावित करता है जिसका प्रभाव मस्तिष्क पर भी पड़ता है, उसकी क्रियाशीलता बढ़ती है,जिससे शरीर के कापने सम्बन्धी बीमारी ठीक हो जाती है।ह्रदय अच्छा कार्य करता है और शरीर में रक्त संचरण पर्याप्त मात्रा में करता है,जिससे शरीर की सुस्ती,आलस्य दूर हो जाता है ,अतः यह अासन शरीर को तरोताजा करने में भी काम आता है। फेफड़ो की ऑक्सीजन ग्रहण करने क्षमता बढ़ जाती है जिससे श्वसन तंत्र ठीक कार्य करता है,और खासी अस्थमा,श्वांस नाली में एलर्जी जैसे रोग भी साधक को नहीं होते।
इसके साथ ही पेट की समस्त बीमारियो को यह आसन दूर करता है।
कब्ज,अपच,वायु दोष दूर हो जाता है,अग्नाशय,इन्सुलिन को पर्याप्त मात्र में बनाता है।जिससे शुगर जैसे रोग भी नहीं होते।लीवर अच्छे से कार्य करता है ,आंतो सम्बन्धी समस्या जैसे हर्निया अर्थात आंत का उतरना जैसी बीमारियाँ नहीं होती है।इसके साथ ही यह आसन पेट व नितम्बो की अतिरिक्त चर्बी भी दूर कर देता है।
पेट की सक्रियता का प्रभाव किडनी पर भी पड़ता है और किडनी भी अधिक क्रियाशील हो जाती है जिससे किडनी संबंधी समस्याएं जैसे मूत्र सम्बन्धी समस्या ,धातु सम्बन्धी समस्या साधक को नहीं होती है।
सावधानियाँ : 
खाली पेट ही अभ्यास करे।
चक्रासन के बाद नौकासन करे।
ह्रदय रोगी कुम्भक न करे।
जिनका पेट सम्बन्धी आपरेशन हुआ हो वे यह आसन न करे।
गर्भवती महिला यह आसन न करे।
सर व पैर के अंगूठो को जमीन से बराबर उचाई पर उठाये।
कमर दर्द या रीढ़ की हड्डी की समस्या हो तो यह आसन न करे।
अनिद्रा में अधिक अभ्यास न करे।


    
   

No comments:

Post a Comment