18 Sept 2015

विपरीत अर्द्ध शलभासन

विपरीत अर्द्ध शलभासन
अब तक हमने पीठ के बल लेटकर करने वाले आसन का वर्णन किया है। अब हम पेट के बल लेटकर करने वाले आसनो का वर्णन करेंगे। 
विपरीत  अर्द्ध शलभासन पेट के बल लेटकर किया जाने वाला प्रथम आसन है। अर्थात यह आसन प्रारम्भ में करना चाहिए। इस आसन को सभी लोग कर सकते है क्योकि यह बहुत आसान सा आसन है। प्रारम्भ में इस आसन को एक एक पैर से करते है फिर दोनों पैरो से एक साथ करते है। 
विधि:  
सर्वप्रथम पेट के बल लेटते है। गहरे लम्बे श्वांस लेकर श्वांस को सामान्य करते है। ठोड़ी को जमीन पर रखते है। दोनों हाथो को कमर की बराबर में रखकर पूरक( श्वांस भरते हुए) करते हुए बाये पैर को आठ से बारह अंगुल ऊपर उठाते है घुटने से पैर को सीधा रखते है यथासंभव उसी अवस्था में कुम्भक(श्वांस को रोककर ) करते है और रेचन(रेचन करते हुए) करते हुए वापस आ जाते है। 
ऐसे ही दाए पैर को पूरक करते हुए आठ से बारह अंगुल ऊपर उठाते है यथासंभव कुम्भक करके उसी अवस्था में रुकते है।फिर रेचन करते हुए वापस आते है।तीन तीन बार एक एक पैर से करते है। 
उसके बाद  दोनों पैरो से एक साथ एक बार करते है। दोनों हाथो को जंघाओं के निचे रखकर पूरक करते हुए दोनों पैरो को ऊपर उठाते है उसी अवस्था में कुम्भक करते है। यथासंभव रुकते है फिर रेचन करते हुए वापस आते है।   
लाभ :
यह आसन पैरो को पुष्ट करता है जिससे जंघाओं,पैरो ,पिंडलियों का दर्द ,घुटनो का भारीपन,पैरो को पूरा सीधा करने में होने वाली दिक्कत दूर हो जाती है। नितम्ब लचीले होते है। पेट, जंघाओं की हड्डियाँ मजबूत होती है। गुप्तांगो की मांसपेशियो में सक्रियता आती है। जिससे धीरे धीरे जननांगो के रोग दूर हो जाते है। पेट की मासपेशियां क्रियाशील हो जाती है जिससे पेट सम्बन्धी रोग कब्ज,अपच,भारीपन दूर हो जाता है। किडनी मजबूत होती है। ह्रदय,फेफड़े पुष्ट होकर अपना कार्य अधिक सक्रियता से करते है। इस आसन से पैरो से छाती तक का सम्पूर्ण नाड़ी तंत्र क्रियाशील होता है। जिससे इन अंगो में रक्त व प्राण वायु का संचरण पर्याप्त मात्रा में होने लगता है 
सावधानियाँ :
खाली पेट ही अभ्यास करे।
 अगर कमर दर्द हो तो एक एक पैर से अभ्यास करे।
ज्यादा एसिडिटी बनती हो तो पहले कुंजल क्रिया कर ले। 
गर्भवती महिला यह आसन न करे। 
ह्रदय रोगी एक एक पैर से बिना कुम्भक किये पूरक रेचन के साथ करे। 






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