17 Dec 2015

सूक्ष्म आसन

Divya Yog Arogya Dham
Yoga Acharya:Manoj Kumar                                                      Blog:Dailyyoga4health.blogspot.in 
(MSc in Science of Yoga and Human                                            Email:vikyashokgandhi@gmail.com
Consciousness)                                                                              Mobile No. +919058418483
Grukul Kaangri Viswavidyalya Haridwar                                                                                                                                                                     सूक्ष्म आसन 
वर्तमान समय में मनुष्यो के शरीर इतने विकारयुक्त हो चुके है,इतने कठोर हो चुके है की अधिकतर आसनो को व्यक्ति कर ही नहीं सकता। जिस कारण योग से पर्याप्त स्वास्थ्य लाभ साधक नहीं ले पाता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ही कुछ सूक्ष्म आसनो को योगाभ्यास के प्रारम्भ में करने हेतु निर्देश दिया गया। ये सूक्ष्म आसन साधक के शरीर को आसनो के लिए तैयार भी करते है,तथा नसों,नाड़ियो के अनेक रोगो को दूर भी करते है।ये सूक्ष्म आसन सामान्य सी लगनेवाली एक्सरसाइज ही है जिन्हे पूरक,कुम्भक व रेचक के साथ करने पर ये सूक्ष्म आसन कहलाती है। यु तो सूक्ष्म आसन भी असंख्य है। परन्तु कुछ मुख्य सूक्ष्म आसन है जो प्रतिदिन शरीर को सक्रिय करने के लिए किये जाने चाहिए। 
1. हस्त चालन : सावधान मुद्रा में खड़े होकर श्वांस की गति को सामान्य करे।पूरक(श्वांस भरकर) करे फिर श्वांस को रोककर(कुंभक करके) दोनों हाथो को गोलाई में चलाये ,प्रारम्भ में 10 से 15 बार या यथाकुम्भक हाथो को चलाये।रुककर श्वांस को सामान्य करे।फिर पूरक करके विपरीत दिशा से ऐसे ही दोनों हाथो को चलाये। अभ्यास के प्रारम्भिक दिनों में यह क्रिया एक एक हाथ से बिना पूरक किये अर्थात बिना श्वांस को रोके,सामान्य श्वांस से करे। शरीर को क्रियाशील करने में यह आसन श्रेष्ठ है। 
लाभ : 
यह क्रिया कंधो के दर्द को ठीक करती है।
गर्दन के दर्द में आराम मिलता है।
हाथो के दर्द सम्बन्धी समस्या ठीक हो जाती है।
सम्पूर्ण तंत्रिका तंत्र पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
शरीर हल्का होता है। 
2. कोहनी चालन :इसमें भी पूरक कर कुम्भक करके हाथो को कंधो से स्थिर रखते हुए यथासंभव कोहनियो से चलाते है।फिर वापस आकर शरीर को सामान्य करते है। 
लाभ: 
कोहनियो के रोगो  को दूर करता है।
कोहनी में दर्द नहीं होता उनके जोड़ मजबूत होते है
टेनिस एल्बो जैसे समस्या नहीं होती है।
3. मुष्ठी विकासक :मुष्ठी अर्थात मुठ्ठी। सावधान मुद्रा में खड़े होकर पूरक करते हुए,हाथो को ह्रदय के सामने लाकर कुंभक करके दोनों हाथो की मुठियो को प्रेशर के साथ खोलते है बंद करते है। फिर रेचन करते हुए वापस आते है।
लाभ:
यह आसन हाथो की समस्त नसों को,नाड़ियों को सक्रिय करता है। 
कंधो का दर्द दूर होता है। 
गर्दन दर्द में लाभ होता है।
हथेली के समस्त रोग दूर हो जाते है 
मणिबन्ध मजबूत होता है।
अंगुलियों के सभी दोष दूर होते है। 
4. मणिबन्ध विकासक : सावधान मुद्रा में खड़े होकर पूरक करके हाथो को ह्रदय के सामने लाकर कुम्भक करके  मुष्ठी बंद करके दोनों मुष्ठियो को कलाई से चारो तरफ यथासम्भव चलाना,रेचन करते हुए वापस आये। उसके बाद पूरक करके कुम्भक करते हुए विपरीत दिशा से चलाये। 
लाभ: 
कलाई के समस्त रोग दूर होते है। 
हथेली के समस्त रोग दूर हो जाते है। 
हाथो से काम करने वालो पर इस आसन का बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
5. करतल चालन: सावधान मुद्रा में खड़े होकर पूरक करते हुए हाथो को ह्रदय के सामने लेकर आये फिर कुम्भक करके अगुठो को स्थिर करते हुए अंगुलियों को यथाकुम्भक चलाये रेचन करते हुए वापस आ जाये। फिर दूसरे चरण में पूरक करके हाथो को कंधो के बराबर में लेकर आये कुम्भक करके उसी प्रकार अंगुलियों को यथासम्भव चलाये।रेचन करते हुए फिर वापस आ जाये।तीसरे चरण में पूरक करते हुए हाथो को कोहनियो से मोड़कर कुंभक करके अगुठो को स्थिर करके अंगुलियों को यथासम्भव चलाये।रेचन करते हुए वापस आ जाये।
लाभ:
अंगुलियाँ मजबूत होती है।
तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।
इस आसन का सबसे अधिक फायदा ह्रदय रोग में होता है।
जिस व्यक्ति को ह्रदय रोग होने की आशंका हो उसे यह आसन विशेष लाभ देता है।
6.करतल पृष्ठ शक्ति विकासक : सावधान मुद्रा में खड़ा होकर पूरक करते हुए हाथो को ह्रदय के सामने कर कुम्भक करके हथेलियों को खोलकर कलाई से उपर निचे चलाना। इसका द्वितीय व तृतीय चरण करतल चालन के समान है इसमें हथेलिया खोलकर ऊपर निचे चलाना है।
लाभ : 
हथेलियाँ सुन्दर व मजबूत होती है।
हथेलियों के रोग दूर होते है।
कलाई मजबूत होती है।
हाथो के,कंधो के दर्द दूर होते है।
अंगुलियों के रोग दूर होते है।
 7. कण्ठ कुप पूरक रेचक : सावधान मुद्रा में खड़े होकर आँखों को बंद करके जालन्धर बन्ध लगाये अर्थात ठुड्डी को कंठ कूप से लगाये और फिर तेजी से रेचन पूरक करे।अर्थात श्वांस तेजी से अंदर बाहर निकालते है।
लाभ :   
मन तनाव मुक्त होता है।
बुद्धि व स्मरण शक्ति बढ़ती है।
कफ सम्बन्धी दोष दूर हो जाते है।
श्वांस नलिका शुद्ध हो जाती है।
थायरॉयड ग्रंथि का विकाश दूर हो जाता है।
8. ललाट शक्ति दायक :सावधान मुद्रा में खड़े होकर आवाज के साथ नाक से पूरक करे फिर जालन्धर बंध लगाकर नेत्रों को बन्द करके गालो को फुलाकर नथुनो को हाथ से बन्द कर ले। यथसंभव कुम्भक करे फिर बन्ध हठाते हुए नथुनो से हाथ हटाकर श्वांस को धीरे धीरे निकालकर वापस आ जाये।
लाभ : 
मुँह के रोग दूर हो जाते है।
चेहरे पर चमक आती है।
चेहरे के कील मुहाँसे दूर हो जाते है।
कान सम्बन्धी दोष दूर हो जाते है।
9. नभ दृष्टि दायक : सावधान मुद्रा में खड़े होकर गर्दन को अधिकतम पीछे की तरफ मोड़ते है। मुँह को बन्द करके नाक से तेजी से रेचक पूरक करते हुए आँखों से आकाश को देखते हुए ध्यान शिखा मण्डल पर लगाये। प्रारम्भ में 5 से 10 बार यह क्रिया करे।
लाभ :
बुद्धि में वृद्धि होती है।
याददाश्त बढ़ती है।
थायरॉयड ग्रंथि सक्रिय होती है।
आँखों की रोशनी बढ़ती है।
श्वांस निर्मल होता है।
10. अशान्ति विनाशक : सावधान मुद्रा में खड़े होकर जमीन पर डेढ़ गज की दूरी पर आँखों को स्थिर करके देखते हुए तेजी से पूरक रेचक करते है। प्रारम्भ में 5 से 10 बार यह क्रिया करे।
लाभ:
मन की अशान्ति दूर होती है।
मस्तिष्क शांत होता है।
मानसिक रोग दूर होते है।
याददाश्त बढ़ती है।
श्वांस निर्मल होता है।
11. ग्रीवा चालन : सावधान मुद्रा में खड़े होकर हाथो को कमर पर रखकर पूरक करके गर्दन को आगे पीछे यथसम्भव चलाये,फिर रेचन करते हुए वापस आये।श्वांस भरकर गर्दन को दाये बायें चलाये फिर वापस आये। तीसरे क्रम में फिर पूरक करे गर्दन को अगल बगल चलाये रेचन करके वापस आये। चौथे चरण में श्वांस भरकर गर्दन को चारो तरफ चलाये रेचन करे फिर पूरक करके गर्दन को विपरीत दिशा से चलाये।
लाभ :
गर्दन का दर्द दूर होता है।
स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या नहीं होती है।
कंधो के दर्द में लाभ देता है।
थायरॉयड ग्रंथि की समस्या दूर हो जाती है। 



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