सहित प्राणायाम
हठयोग के दोनों ग्रंथो हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता में सहित कुम्भक का वर्णन है। यह प्राणायाम ऐसा प्राणायाम है जो केवल कुम्भक की प्रारम्भिक अवस्था में साधक को करना चाहिए। केवल कुम्भक के अभ्यास से पहले सहित कुम्भक का अभ्यास आवश्यक है।
विधिः
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"रेचकः पूरकः कार्यः स वै सहितकुम्भकः। "
जब रेचक पूरक के साथ जो प्राणायाम किया जाता है तो वह सहित कुम्भक कहलाता है।
अर्थात रेचन करके उड्डयन बन्ध लगाते हुए जालंधर बन्ध लगाना तुरंत मूल बन्ध लगाकर यथासंभव कुम्भक करना और फिर जालंधर बंध और उड्डयन बंध खोलकर धीरे धीरे पूरक करना।
लाभ :
जठर अग्नि प्रदीप्त होती है जिससे पाचन सम्बन्धी रोग दूर होते है।
वायु सम्बन्धी रोग दूर होते है।
उदर की मांसपेशियों की अच्छी मालिस होती है।
फेफड़े मजबूत होते है।
सावधानियाँ :
जो व्यक्ति ह्रदय रोगी है वो इसका अभ्यास ना करे।
जिनके उदर में गर्मी रहती हो उड्डयन बन्ध हल्का लगाये।
इतना लम्बा कुंभक न करे की शरीर को सामान्य करने में तेजी से श्वांस लेना पड़े।
अस्थमा के रोगी को यह कुम्भक नहीं करना चाहिए।
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