प्लाविनी प्राणायाम
हठयोगप्रदीपिका में ही इस कुम्भक का वर्णन है। घेरण्ड सहिंता में प्लाविनी का वर्णन नहीं है। हठयोगप्रदीपिका में भी इसके लिए केवल एक श्लोक दिया गया है।
विधिः
"अन्तःप्रवर्तितोदारमारुतपुरितोदरः।
पयस्यगाधेअपि सुखात् प्लवते पद्मपत्रवत्।।"
श्वांस नलिका द्वारा उदर को पर्याप्त मात्रा में वायु से पूरा भर लेना ही प्लाविनी कुम्भक है।
इस प्रकार कहा जा सकता है की इस प्राणायाम में फेफड़ो में श्वांस न भरकर पेट में वायु भरनी है।तथा दीर्घ पूरक,कुम्भक और तब रेचन करना है।
लाभ :
इस प्राणायाम के सम्बन्ध में कहा गया है की -
"पयस्यगाधेअपि सुखात् प्लवते पद्मपत्रवत्।"
इस प्राणायाम के अभ्यास से साधक जल पर कमलपत्र के समान सरलता से तैरता रहता है। अर्थात उसका शरीर वायु के समान हल्का हो जाता है।
सावधानियाँ :
यह कुम्भक सामान्य साधक के लिए नहीं है
लाभ :
इस प्राणायाम के सम्बन्ध में कहा गया है की -
"पयस्यगाधेअपि सुखात् प्लवते पद्मपत्रवत्।"
इस प्राणायाम के अभ्यास से साधक जल पर कमलपत्र के समान सरलता से तैरता रहता है। अर्थात उसका शरीर वायु के समान हल्का हो जाता है।
सावधानियाँ :
यह कुम्भक सामान्य साधक के लिए नहीं है
No comments:
Post a Comment