पाशिनी मुद्रा
घेरण्ड संहिता में कहा गया है कि :-
"कण्ठे पृष्ठे क्षिपेत्पादो पाशवद दृढबन्धनम्।
सा एव पाशिनि मुद्रा शक्तिप्रबोधकारिणी "
दोनों पैरो को गर्दन के पीछे ;पृष्ठ भाग पर रखकर पाश के समान दृढ़तापूर्वक बंधन करना पाशिनी मुद्रा कहलाती है।
लाभ :-
"पाशिनी महती मुद्रा बलपुष्टिविधायिनी।
साधनीया प्रयत्नेन साधकैः सिद्धिकांक्षिभिः।।"
इस मुद्रा के अभ्यास से बल व पुष्टि प्राप्त होती है। यह सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करती है, तथा सिद्धियो को प्रदान करती है।
विश्लेषण :- इस मुद्रा के अभ्यास से पेट सम्बन्धी रोग दूर हो जाते है।रीढ़ की हड्डी लचीली होती है कमर दर्द, गर्दन दर्द नहीं होता है ,तथा फेफड़े व गुर्दो पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता है। पैर लचीले व मजबूत होती है। यह मुद्रा को कुण्डलिनी भी जाग्रत करने में सहायक होती है।
सावधानियाँ :
खाली पेट ही अभ्यास करें।
खाली पेट ही अभ्यास करें।
प्रारम्भ में धीरे धीरे इस मुद्रा का अभ्यास करें।
पेट के रोग होया पेट का आपरेशन हुआ हो तो यह मुद्रा न करें।
हर्निया या आंतो की कोई अन्य समस्या हो तो यह मुद्रा न करें।
कंधो में दर्द,गर्दन में दर्द हो तो यह अभ्यास न करें।
कमर में दर्द या रीढ़ की हड्डी की कोई समस्या हो तो यह अभ्यास न करें।
गुर्दे में पथरी या अन्य समस्या हो तो यह मुद्रा न करें।
घुटनो या जंघा में कोई समस्या हो तो यह अभ्यास न करें।
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