25 Sept 2020

ध्यान 

महर्षि पतंजलि विभूतिपाद के शुत्र में कहते हैं।
"तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम "
जब साधक धारणा  का अभ्यास करता है।  तोह ध्येय का ज्ञान करने वाली वृत्ति अर्थात ध्येय (  जो ध्यान का विषय है) आलम्बन वाली वृत्ति सामान प्रवाह में में उदय नहीं होती है।  बीच बीच में अन्य विषय वाली वृत्ति का उदय होता रहता है
परन्तु जब ध्येय  (जो ध्यान का विषय है ) आलम्बन वाली वृत्ति का लगातार एकतानता के साथ सामान प्रवाह  से उदय होता रहता है।  कोई अन्य वृत्ति बीच में नहीं आती तोह उसको "ध्यान "कहते हैं।  

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