षट्कर्म
अब हम षट्कर्म पर चर्चा करेंगे
हठयोगप्रदीपिका में सर्वप्रथम आसान फिर प्राणायाम और उसके बाद षट्कर्म का विवरण है। शायद उस वक़्त षट्कर्म की इतनी आश्यकता नहीं रही होगी। कोई एक साधक होता होगा जिसका शरीर इतना विकार रहित होगा की उसको षट्कर्म कि आश्यकता होती हो। इसलिए ही षट्कर्म को तीसरा स्थान दिया गया है। वर्तमान समाज की स्थिति को देखते हुए ,मनुष्य की अनियमित व अनियत्रित दिनचर्या को देखते हुए आज ये बहुत जरूरी हो गया है की साधक सर्वप्रथम षट्कर्मो का अभ्यास करे
षट्कर्म: विभिन्न प्रकार की छः क्रियाएँ जिनसे शरीर का शुद्धिकरण किया जाता है
विभिन्न प्रकार की ये शोधन क्रियाएँ उनके लिए आवश्यक नहीं है जिनके त्रिदोष सम हो
परन्तु जिनमे स्थूलता और कफ अधिक हो उन्हें ये क्रियाएँ करनी चाहिए इसके बारे में कहा गया है की "मेदः श्लेष्माधिकः पूर्व षट्कर्माणि समाचरेत।
परन्तु जिनमे स्थूलता और कफ अधिक हो उन्हें ये क्रियाएँ करनी चाहिए इसके बारे में कहा गया है की "मेदः श्लेष्माधिकः पूर्व षट्कर्माणि समाचरेत।
अन्यस्तु नचारेत्तानि दोषनाम सम्भावतः "
सामान्यतः आज मनुष्य के स्वास्थय की यह अवस्था हो चुकी है की करीब करीब
प्रत्येक व्यक्ति मेद ,श्लेष्म,वायु आदि अनेक रोगो से ग्रसित है।
प्रत्येक व्यक्ति मेद ,श्लेष्म,वायु आदि अनेक रोगो से ग्रसित है।
हठयोगप्रदीपिका एवं घेरण्ड सहिता में धौति,वस्ति,नोली,नेति, त्राटक व कपालभाति
इन छः शोधन क्रियाओ का वर्णन है।
धौतिर्वस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकम नोलिकम तथा।
कपालभातिश्तानी षट्कर्माणि प्रचक्षते।। फल : षट्कर्मो के सम्बन्ध में कहा गया है की शरीर को शुद्ध करने वाली ये छः क्रियाएँ बड़े फल देने वाली है। योगियों को इन क्रियाओ को गुप्त ही रखना चाहिए।
क्रमषटकमिदम् गोप्यं घाटशोधनकारकम्।
विचित्रगुणसंधायि पूज्यते योगिपुगवेः।।
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