ताड़ासन
आसनो का वर्णन करते हुए हम कुछ ऐसे आसनो का भी वर्णन करेंगे जो हठयोगप्रदीपिका या घेरण्ड संहिता में नहीं है। उनका वर्णन अन्य ग्रंथो में है।
आसनो का वर्णन हम चार भागो में बाटकर करेंगे
१ खड़े होकर करने वाले आसन
२ पीठ के बल लेटकर करने वाले आसन
३ पेट के बल लेटकर करने वाले आसन
४ बैठकर करने वाले आसन
अतः सर्वप्रथम हम खड़े होकर करने वाले आसनो का वर्णन करेंगे
खड़े होकर करने वाले आसन
ताड़ासन : इसका वर्णन हठयोगप्रदीपिका या घेरण्ड संहिता में नहीं है। परन्तु यह प्रारम्भिक आसन बड़ा ही महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है इस आसन को साधक को प्रारम्भ में करना चाहिए।
ताड़ासन अर्थात शरीर को ताड़ना,शरीर को खीचना,शरीर को तनाव देना। तनाव क्यों देना इसके बहुत कारण हो सकते है
जैसे जब हम आसन करते है तो निर्देश होता है की ४ - ५ घंटे पहले खाना खा लेना चाहिए। जिससे की खाना पूर्णतः पांच जाये।
ताड़ासन हम इसलिए करते है जिससे की अगर कोई अन्न का कण आँत वगैरह में अभी बचा है तो वो मलाशय में आ जाये और मूत्र के कण मूत्राशय में आ जाये
या कठिन आसन करते हुए कही शरीर में खिचाव ना आ जाये। इसलिए ताड़ासन से शरीर की शिथिलता को दूर करने के लिए पुरे शरीर की मांशपेशियों को खींचकर अन्य आसनो के लिए तैयार करते है
विधि : हमेशा ही एक बात का ध्यान रखे की किसी भी आसन को करते हुए ज्यादा
complication पैदा न करे,आराम से आसान करे।
complication पैदा न करे,आराम से आसान करे।
सर्वप्रथम सीधे सावधान मुद्रा में खड़े हो जाये। फिर श्वांस को भरकर दोनों हाथो को ऊपर की तरफ उठाते हुए एड़ियो को ऊपर उठकर पंजो पर पर खड़े होते है और उसी अवस्था में हाथो को ऊपर की और खेचते हुए शरीर को पूरा तानते है। यथासम्भव जब तक उस अवस्था में रूक सकते है,रुके रहे। अर्थात ना १० सै . ना २० सै और ना ३० सेकण्ड ,जब आपको श्वांस लेने की आवश्यकता हो श्वांस धीरे धीरे छोड़ते हुए वापस सावधान मुद्रा में आ जाये।
लाभ : लगभग दो से तीन माह तक ताड़ासन का अभ्यास साधको से कराया (जो विभिन्न बीमारियो से पीड़ित थे जैसे गर्दन का दर्द,कब्ज,कंधे का दर्द,हाई बी पी.वायु दोष आदि।)और देखा की ताड़ासन लगभग सम्पूर्ण शरीर के बाहरी व आंतरिक अंगो को लाभ देता है। जब हम शरीर को तानते है अनेक हिस्सों में शारीरिक व मानसिक क्रिया होती है
जिनका वर्णन शरीर के उपरी हिस्से से ही करते है। ताडासन थायरॉयड ग्रंथि को प्रभावित करता है जिससे वह सक्रिय होकर अनेक हार्मोन्स का प्रवाह शरीर में करती है जो अनेक शारीरिक व् मानसिक क्रियाओ को करते है नर्वस सिस्टम के विकाश में भी थायरॉयड ग्रथि सहायक होती है। अगर नर्वस सिस्टम सही कार्य न करे तो शरीर की लगभग सभी क्रियाए बाधित होती है। गले के साथ ही चेहरे को भी लाभ देता है.
छाती,फेफड़े,ह्रदय सम्बन्धी विकार भी इससे दूर होते है। हाथो की अंगुलियो ,कोहनी,व कंधो संबंधी समस्या दूर होती है। कमर के विकार दूर होते है व रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और अधिक लचकदार हो जाती है।
पसलियों की अच्छी मालिश हो जाती है और उनमे खिचाव को सहने की क्षमता बढ़ जाती है। पेट सम्बन्धी रोग दूर होते है जैसे अग्नाशय अधिक सक्रिय होकर इन्सुलिन बनता है जिससे ब्लड शुगर दूर होता है।खाना पचाने के लिए पित्त की थैली से एसिड का प्रयाप्त मात्र में प्रवाह होता है और लिवर ठीक से कार्य करता है जिससे कब्ज,एसिडिटी,अपच की समस्या दूर हो जाती है। ताड़ासन वायु दोष को भो दूर करता है। अगर पेट में भारीपन हो तो ताड़ासन का अभ्यास करने से आराम मिलता है। यह वीर्यपात,पैशाब सम्बन्धी रोगो में भी लाभ पहुँचाता है। जंघाओं की माँसपेशियों को मजबूत करता है। घुटनो के जोड़ो को मजबूत करता है जिससे घुटनो के दर्द सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है.पिंडलियों पर भी यह सकारात्मक असर करता है। पैरों के पंजे व अंगुलियों की मांसपेशियों के रोगो को दूर करके उन्हें मजबूत करता है।
अब अगर परिणाम की बात करू तो स्वम् के अनुभव से मैंने यह जांच किया है की ताड़ासन शरीर
में उपस्थित सात चक्रो में से छः चक्रो को सीधे ही प्रभावित करता है,सक्रिय करता है।
ताड़ासन से मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनाहत,विशुद्धि,व आज्ञाचक्र प्रभावित होते है.
ये चक्र शरीर की अनेक शारीरिक मानसिक क्रियाओ को बेहतर ढंग से करने के लिए
शरीर उपस्थित नाड़ियो को अतिरिक्त सक्रिय करते है।
मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर की सक्रियता होने से यह आसन गर्भवती महिलाओ के लिए भी उपयोगी है। जब तक बच्चा भूर्ण अवस्था में हो और उसके बाद करीब एक या दो माह तक ताड़ासन का अभ्यास
बहुत ही लाभदायक है ताड़ासन का अभ्यास गर्भाशय के मुख का संकुचन व आंकुचन
करता है जिससे की आपरेशन के बिना ही डिलिवरी हो जाती है।
बच्चो की हाइट बढाने में भी ताड़ासन उपयोगी है।
अतः उपरोक्त निष्कर्षो के आधार पर कहा जा सकता है की ताड़ासन शरीर के लगभग सभी अंगो को लाभ पहुचता है और कुछ रोगो में यह विशेष उपयोगी है।
सावधानियाँ : खाली पेट ही अभ्यास करे।
पैरो सम्बन्धी कोई रोग हो तो इसका अभ्यास न करे।
योगाभ्यास के प्रारम्भ में यह आसन करे।
गर्भवती महिला चार माह के बाद इसका अभ्यास ना करे।
पंजो पर खड़े होते किसी एक बिंदु पर ध्यान करे जिससे की बैलन्स बन जाये।
जिनका वर्णन शरीर के उपरी हिस्से से ही करते है। ताडासन थायरॉयड ग्रंथि को प्रभावित करता है जिससे वह सक्रिय होकर अनेक हार्मोन्स का प्रवाह शरीर में करती है जो अनेक शारीरिक व् मानसिक क्रियाओ को करते है नर्वस सिस्टम के विकाश में भी थायरॉयड ग्रथि सहायक होती है। अगर नर्वस सिस्टम सही कार्य न करे तो शरीर की लगभग सभी क्रियाए बाधित होती है। गले के साथ ही चेहरे को भी लाभ देता है.
छाती,फेफड़े,ह्रदय सम्बन्धी विकार भी इससे दूर होते है। हाथो की अंगुलियो ,कोहनी,व कंधो संबंधी समस्या दूर होती है। कमर के विकार दूर होते है व रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और अधिक लचकदार हो जाती है।
पसलियों की अच्छी मालिश हो जाती है और उनमे खिचाव को सहने की क्षमता बढ़ जाती है। पेट सम्बन्धी रोग दूर होते है जैसे अग्नाशय अधिक सक्रिय होकर इन्सुलिन बनता है जिससे ब्लड शुगर दूर होता है।खाना पचाने के लिए पित्त की थैली से एसिड का प्रयाप्त मात्र में प्रवाह होता है और लिवर ठीक से कार्य करता है जिससे कब्ज,एसिडिटी,अपच की समस्या दूर हो जाती है। ताड़ासन वायु दोष को भो दूर करता है। अगर पेट में भारीपन हो तो ताड़ासन का अभ्यास करने से आराम मिलता है। यह वीर्यपात,पैशाब सम्बन्धी रोगो में भी लाभ पहुँचाता है। जंघाओं की माँसपेशियों को मजबूत करता है। घुटनो के जोड़ो को मजबूत करता है जिससे घुटनो के दर्द सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है.पिंडलियों पर भी यह सकारात्मक असर करता है। पैरों के पंजे व अंगुलियों की मांसपेशियों के रोगो को दूर करके उन्हें मजबूत करता है।
अब अगर परिणाम की बात करू तो स्वम् के अनुभव से मैंने यह जांच किया है की ताड़ासन शरीर
में उपस्थित सात चक्रो में से छः चक्रो को सीधे ही प्रभावित करता है,सक्रिय करता है।
ताड़ासन से मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनाहत,विशुद्धि,व आज्ञाचक्र प्रभावित होते है.
ये चक्र शरीर की अनेक शारीरिक मानसिक क्रियाओ को बेहतर ढंग से करने के लिए
शरीर उपस्थित नाड़ियो को अतिरिक्त सक्रिय करते है।
मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर की सक्रियता होने से यह आसन गर्भवती महिलाओ के लिए भी उपयोगी है। जब तक बच्चा भूर्ण अवस्था में हो और उसके बाद करीब एक या दो माह तक ताड़ासन का अभ्यास
बहुत ही लाभदायक है ताड़ासन का अभ्यास गर्भाशय के मुख का संकुचन व आंकुचन
करता है जिससे की आपरेशन के बिना ही डिलिवरी हो जाती है।
बच्चो की हाइट बढाने में भी ताड़ासन उपयोगी है।
अतः उपरोक्त निष्कर्षो के आधार पर कहा जा सकता है की ताड़ासन शरीर के लगभग सभी अंगो को लाभ पहुचता है और कुछ रोगो में यह विशेष उपयोगी है।
सावधानियाँ : खाली पेट ही अभ्यास करे।
पैरो सम्बन्धी कोई रोग हो तो इसका अभ्यास न करे।
योगाभ्यास के प्रारम्भ में यह आसन करे।
गर्भवती महिला चार माह के बाद इसका अभ्यास ना करे।
पंजो पर खड़े होते किसी एक बिंदु पर ध्यान करे जिससे की बैलन्स बन जाये।
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