19 Aug 2015

अर्द्धचक्रासन

अर्द्धचक्रासन 
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है - आधा चक्र। शरीर को उस प्रकार से खीचते है की उसकी आकृति आधे चक्र की तरह हो। 
विधि : सर्वप्रथम सावधान मुद्रा में खड़े होते है फिर दोनों पैरो को आपस में मिलकर दोनों हाथो को कमर पर इस प्रकार रखते है की उँगलियाँ पीछे कमर की तरफ तथा अगुठे आगे की तरफ हो। फिर पूरक करते  हुए (श्वांस भरकर )उंगलियो से सहारा लेते हुए कमर को अंडर की तरफ मोड़ते हुए गर्दन को छाती को व कंधो को पीछे की तरफ ले जाते है। यथासम्भव उसी अवस्था में कुम्भक करके रखते है (श्वांस रोक के रखते है ) फिर रेचन करते हुए  (श्वांस को छोड़ते हुए )धीरे धीरे वापस आते है। 
लाभ : अर्द्धचक्रासन शरीर को कई प्रकार से लाभ देता है यह कंधो को कोहनियो को मजबूत करता है छाती को फैलाता है। फेफड़ो की श्वांस लेने की क्षमता बढ़ती है। तथा यह कमर दर्द,स्लिप डिस्क,और सायटिका में बहुत ही लाभदायक है। सामान्यतः यह पुरे शरीर में लचक पेदा करता है। रीढ़ की हड्डी के लगभग सभी मनको को सक्रिय करता है जो अनेक प्रकार से व्यक्ति की सक्रियता को प्रभावित करता है। इससे गर्दन का दर्द भी दूर होता है थायरॉयड ग्रथि को लाभ मिलता है ह्रदय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पेट की मांसपेशिया में सकारात्मक संचालन होता है। कब्ज,अपच,वायु दोष की समस्या दूर होती है। पैरो की, जंघाओं की मांसपेशियों मजबूत होती है जिससे पैरो का दर्द दूर होता है। धुटनो का भारीपन दूर होता है यह आसान विशुद्धि चक्र,अनाहत चक्र,तथा मणिपुर चक्र को प्रभावित करता है। प्रत्येक चक्र असंख्य प्रकार से शरीर को सक्रिय करता है। क्योकि प्रत्येक चक्र बहुत सी नाड़ियो का एक बहुत बड़ा समूह होता है और जब हम अलग अलग आसन करते है तो उन सभी आसनो से चक्रो की उन नाड़ियो में से कोई विशेष नाड़ी प्रभावित होती है और अधिक सक्रिय हो जाती है इसी कारण अलग अलग आसनो के करने से  कोई एक चक्र प्रभावित होकर किसी एक नाड़ी को सक्रिय करता है। जिससे शरीर पर उसका अलग प्रभाव पड़ता है। यह आसन गुदा सम्बन्धी रोगो को दूर करने में भी सहायक है 
कैसे - जब हम कमर को अंदर की तरफ करके शरीर को तानते है तो रीढ़ की हड्डी में तनाव आता है यह तनाव गर्दन से निचे तक होता है जिसका प्रभाव गुदा की मांसपेशियों पर भी पड़ता है। क्योकि वे रीढ़ की हड्डी से जुडी होती है।
इससे ह्रदय की रक्त शुद्धिकरण क्षमता बढ़ती है श्वसन तंत्र ठीक प्रकार से कार्य करता है। अपान वायु जो शरीर में गलत मार्ग से बहने पर अनेक बीमारियो को जन्म देती है वो सही मार्ग से बहने लगती है।
सावधानियाँ : खली पेट ही अभ्यास करे।
कमर पर अतिरिक्त दबाव न बनाये।
गर्दन को शरीर के साथ ही समायोजित करते हुए धीरे धीरे पीछे करे।
पीछे की तरफ जाते हुए पैरो को घुटनो से न मोडे।
गर्भवती महिला इसका अभ्यास न करे क्योकि इसे करते हुए गर्भाशय पर अतिरिक्त दबाव पडता है।













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