3 Aug 2015

बस्ति क्रिया के फल

बस्ति क्रिया के फल 
बस्ती क्रिया मूलतः उदर और मलाशय के शोधन की क्रिया है। यह क्रिया अनेक उदर सम्बन्धी बीमारियो को दूर करती है। इस क्रिया के द्वारा प्रमेह,उदावर्त,और अपान वायु का प्रवाह सही दिशा में होने लगता है( अपान वायु का सही दिशा में न बहना अर्थात गुदा मार्ग से न बहना अनेक बीमारियो जैसे गैस बनना,शरीर में दर्द रहना,जोड़ो में दर्द रहना आदि का कारण है)जिससे साधक का शरीर पूर्ण रूप से हल्का फुल्का होकर कामदेव के समान कान्तिमान हो जाता है। बस्ती क्रिया से जठर अग्नि प्रज्वलित होती है।यह जठर अग्नि प्रज्वलित होकर आमवात का विनाश कर देती है 
हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है की 
"गुल्मप्लीहोदरं चापि वातपित्तकफोदभवाः। 
बस्तिकर्मप्रभावेन क्षीयन्ते सकलामयाः।।" 
बस्ति  कर्म से वायुगोला ,तिल्ली,जलोदर,तथा वात,पित्त,कफ सम्बन्धी सभी रोग नष्ट होते है 
विश्लेषण :    भारतीय चिकित्सा पद्ति में तीन दोषो का ही वर्णन किया गया है। ये तीनो दोष वात (वायु)  ,पित्त(एसिडिटिक) और कफ कहे गए है। आयुर्वेद के अनुसार सम्पूर्ण बीमारिया इन तीन दोष के कारण ही होती है।अर्थात शरीर के सम्पूर्ण रोग इन तीनो वात पित्त कफ के साम्य अवस्था में न रहने के कारण होते है। बस्ती क्रिया के द्वारा ये दोष सम अवस्था में आते है। जिससे शरीर के सभी रोग दूर होते है। इसलिए ही इसके फल में कामदेव के समान कांतिमान शरीर कहा गया है।                                       

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