26 Aug 2015

गरुड़ासन

गरुड़ासन 
इस आसन में शरीर को गरुड़ की आकृति देते है। शरीर की ऐसी अनेक मांसपेशियाँ होती है जो सामान्यतः उपयोग ही नहीं होती है गरुड़ आसान में सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशिया प्रभावित होती हैं। 
विधि :
सर्वप्रथम सववधान मुद्रा में खड़े होते है उसके बाद पुरक करके बाये पैर को उठकर दाए पैर पर ऐसे लपेटते है जैसे सर्प पेड़ पर लिपटा होता है या जैसे रस्सी को लपेटते है। और साथ में बाए हाथ को  दाए हाथ पर,ऐसे ही लपेटते है। किसी एक बिंदु पर आँखों को स्थिर करते है। कुम्भक करके उसी अवस्था में यथासंभव रुकते है फिर रेचन करते हुए वापिस आते है। इसी प्रकार दूसरे पैर से करने पर आसन का एक चक्र पूरा हो जाता है। क्योकि गरुड़ आसन भी एक ध्यानात्मक आसन है अतः यह मन को शांत भी करता है और अगर मन अशांत होगा तो यह आसन होगा भी नहीं। कहने का अर्थ यह है की अगर मन शांत नहीं है तो शरीर का blance नहीं बन पायेगा। 
लाभ:   
जो व्यक्ति आध्यात्मिकता के लिए योग कर रहे है उन्हें थोड़ा लम्बे समय तक गरुड़ासन का अभ्यास करना चाहिए। गरुड़ासन के ध्यान के लिए किये गए हमारे प्रयोगो में पाया गया की जननांगो पर नियंत्रण करने में यह आसन बहुत ही उपयोगी है जिसका मुख्य लाभ यह मिलता है की साधक को मानसिक स्थिरता जल्दी ही मिल जाती है। लगभग छः माह तक गरुड़ासन का नियमित व लम्बा अभ्यास अत्यधिक मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। जिन साधको को लम्बे समय से यह समस्या है कि प्रयास के बाद भी उनका ध्यान नहीं लगता।  ध्यान के लिए बैठते ही असंख्य विचार आने लगते है तो उन्हें रोजाना ध्यान से पहले गरुड़ आसन का अभ्यास करना चाहिए। ऐसा करने से विचारो में तेजी से न्यूनता आने लगती है। व्यक्ति स्थिर होने लगता है। यह आसन मूलाधार व स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करता है। जिससे साधक की द्रव्य धारण की क्षमता बढ़ जाती है। व्यक्ति लम्बे समय तक बिना भोजन व पानी के रह सकता है। उसका भूख प्यास पर नियंत्रण हो जाता है। इसके साथ ही पंच तत्व में से पृथ्वी अर्थात मिटटी का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। जिससे व्यक्ति भोग विलास की वस्तुओ का स्वभाव से ही त्याग कर देता है। 
शारीरिक रूप से भी गरुड़ासन बहुत उपयोगी है ,जैसे रस्सी को दूसरी रस्सी के साथ ऐठन चढ़ाते है उसी प्रकार इसमें हाथो व पैरो को भी एठते है  जिससे लगभग सम्पूर्ण शरीर की मासपेशियों में ऐठन आती है,जिसका लाभ यह होता है की शरीर की समस्त नाडिया सक्रिय हो जाती है।
 यह आसान पैरो कि समस्त नसों को ,नाड़ियो को मजबूत करता है। पैर पुष्ट होते है।पिंडलियों की मासपेशियों से अच्छा रक्त संचरण होता है। यह आसन वायु दोष का भी निराकरण करता है क्योकि शरीर में वायु का स्थान नाभि से पैरो तक कहा है जब पैर पुष्ट होगे तो वायु अपने मार्ग से स्वतः ही बहने लगेगी,जिससे पैरो की व जोड़ो  के दर्द सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है गठिया बाय जैसी समस्या भी नहीं होती। घुटनो को मजबूत करता है जिससे घुटना प्रत्यार्पण की कभी आवश्यकता नहीं होती।यह आसन उपस्थ सम्बन्धी समस्त समस्याओ का निदान हो जाता है। जैसे बहुमूत्र ,वीर्यपात,स्वप्नदोष,गदूद होना,घात गिरना ,अंडकोष में पानी आना,अंडकोष का बढ़ना,,अंडकोष में दर्द होना,शुक्राणुओ का प्रयाप्त मात्र में न बनना,गंदे विचार आना,ब्रह्मचर्य पालन में आग्रह,एडल्ट विचार आते ही वीर्यपात होना ,गुदा सम्बन्धी बीमारिया जैसी समस्याएं साधक को नहीं होती और अगर होती भी है तो वो ठीक हो जाती है। नितम्बो की हड्डियों व मासपेशियों के लिए व कमर दर्द के लिए भी यह आसन उपयोगी है। सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशिया इस आसन में खींची जाती है जिससे यह मोटापा भी दूर करता है शरीर में अतिरिक्त चर्बी इस आसन से नहीं रहती है।
सावधानियाँ :
खली पेट ही अभ्यास करे।
ताड़ासन ,वृक्षासन का पहले अभ्यास करे।
जल्दबाजी में आसान न करे।
ब्रह्मचर्य का पालन करे वरना blance  बनाने में दिक्क़त होगी ।
पैरो में,घुटनो में कोई चोट हो तो इसका अभ्यास न करे।
अगर मूत्र आ रहा हो तो फ्रेश होने के बाद अभ्यास करे।


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