27 Aug 2015

वीरभद्रासन

वीरभद्रासन 
जैसा की नाम से स्पष्ट है -वीर -बहादुर, और  भद्र -सज्जन।अर्थात वह आकृति जो बहादुरी देती है और जो सज्जनता देती है। कभी हमने ध्यान से नहीं देखा की जब हम किसी के साथ कोई खेल जैसे कुश्ती आदि या युद्ध में जैसे तलवार आदि  करते है तो हमारे शरीर की आकृति वही होती है जो वीरभद्रासन में होती है। 
विधि:
सर्वप्रथम सावधान मुद्रा में खड़े होते है। फिर पैरो के बीच में करीब तीन फिट की दूरी लेकर पैरो को त्रिकोण आसन की अवस्था में करते है अर्थात बाये पैर को उठाकर पंजे को घुमाकर दाये पैर के लंबवत करके कमर ,छाती व गर्दन को भी उसी दिशा में घूमाते है इस प्रकार करने से बायाँ पैर आँखों के सामने आ जाता है और दायाँ पैर लंबवत दिशा में पीछे ही रह जाता है। पूरक करके दोनों हाथो को सिर के उपर उठकर उनकी हथेलियाँ को मिलाते है। और फिर कुम्भक करके अगले पैर को (दाये पैर को) घुटने से मोड़कर उस शरीर का वजन डालते हुए पिछले पैर को (बाये पैर को) सीधा रखते हुए हल्का कर देते है यथासंभव कुम्भक करने के बाद रेचन  करते हुए वापस आते है। इसी प्रकार दूसरे पैर से भी करते है। इस बार बाये पैर को पीछे रखकर दायें पैर को उसके लंबवत रखकर घुटने से मोड़कर सर के ऊपर हाथो को मिलकर पूरक करके यथासंभव उसी अवस्था में कुम्भक करके रेचन करते हुए वापस आते है। इस प्रकार दोनों पैरो से करने पर आसन का एक चक्र पूरा हो जाता है। 
लाभ :
यह आसन पैरो की सभी मासपेशियों को दृढ करता है। नितम्ब,घुटने व जंघाएँ पुष्ट होती है। पंजे स्थिर होते है। पैरो में जो कम्पन होता है वह दूर हो जाता है। कंधो से,कोहनियो से व बाजु से हाथ मजबूत होते है। कमर में लचक आती है। गुर्दो सम्बन्धी बीमारियां नहीं होती। फेफड़े पुष्ट होते है। 
सावधानियाँ :
खली पेट ही अभ्यास करे। 
प्रारम्भ में शरीर को अधिक न खींचे। 
जिनकी कमर में दर्द रहता हो वो ये आसन न करे। 
घुटनो में पैरो में कोई चोट लगी हो तो वे ये आसन न करे। 
सर दर्द,उच्च रक्त चाप हो तो ये आसन न करे। 
शारीरिक कमजोरी होने पर इस आसन का अभ्यास न करे। 

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