कपालभाति के लाभ
हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है की
कपालभातिर्विख्याता कफदोष विशोषणी।
यह कपालभाति कफ दोष को दूर करती है। कपालभाति जैसा की नाम से भी स्पष्ट है कपाल ,मस्तक,ललाट या चेहरा और भाति अर्थात तेज,उज्जवल,या चमकदार कपालभाति अर्थात मस्तक या चेहरे का तेज। अर्थ यह है की कपालभाति से चेहरे पर तेज,एक दिव्य कान्ति आती है। चेहरे के सभी निशान,फुंसिया दूर होती है और चेहरे से संबंधित अन्य रोग जैसे दातो के रोग,कानो के रोग,आँखे की समस्या ,नाक व् श्वास संबन्धी कोई रोग हो तो कपालभाति के अभ्यास से दूर हो जाता है। चेहरे के साथ ही यह सिर सम्बन्धी समस्याओ जैसे बालो का झड़ना,सिर में कोई गांठ होना ,डैन्ड्रफ होना सिर में खुजली आना,
बालो का दोमुहे होना को भी समाप्त करता है।हालांकि कपालभाति का अभ्यास उच्च रक्त चाप,अस्थमा,तथा ह्रदय रोगो में करने को मना किया गया है। परन्तु प्रयोगो से यह देखने में आया है की इन रोगो में मध्यम व निम्न कपालभाति बहुत लाभदायक है।कपालभाति का विपरीत क्रम उच्च रक्त चाप में अधिक लाभ करता है। कपालभाति मोटापे को भी दूर करता है।
कपालभाति का अतिसूक्ष्म रूप से अध्ययन करने पर कुछ बाते स्पष्ट हुई है।शरीर के विभिन्न सात हिस्सों में
कपालभाति का अतिसूक्ष्म रूप से अध्ययन करने पर कुछ बाते स्पष्ट हुई है।शरीर के विभिन्न सात हिस्सों में
नसों व नाड़ियो का समूह होता है।जहा से शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा प्रवाहित होती है।नाड़ियो के
इन समूहो को ही चक्र कहते है।इन चक्रो की संख्या भी सात होती है।
मूलाधार चक्र (गुदा से थोड़ा सा ऊपर ),स्वाधिष्ठान चक्र(लिंग से थोड़ा सा ऊपर ),मणिपुर चक्र(नाभि के पास ),अनाहत चक्र (ह्रदय के पास ),विशुद्धि चक्र (कंठ के पास ),आज्ञा चक्र (दोनों आँखों के मध्य माथे पर ),सहस्रार चक्र (सिर के ऊपरी हिस्से में )।
कपालभाति मूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान चक्र,मणिपुर चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र को सक्रिय करता है।जिनके अपने अलग अलग कार्य है। मूलाधार व स्वाधिष्ठान व मणिपुर चक्र से बवासीर,भगन्दर,पेशाब सम्बन्धी समस्या,महिलाओ में जनन सम्बन्धी समस्या ,मासिक धर्म की समस्या ,वीर्य सम्बन्धी समस्या ठीक होती है। उदर की सभी समस्याओ का निदान होता है जैसे अपच,कब्ज,पिलिया,ब्लड शुगर,किडनी सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है।
अनाहत चक्र के सक्रिय होने से ह्रदय सम्बन्धी समस्याऐ ठीक होती है। रक्त का शुद्धिकरण होता है जिससे शरीर में गाँठ नहीं बनती और पुरानी गाँठ समाप्त हो जाती है अतः यह कैंसर के लिए भी बहुत उपयोगी है तथा एलर्जी सम्बन्धी रोग भी दूर होते है। हीमोग्लोबिन पर्याप्त मात्र में बनता है।
इसी प्रकार विशुद्धि चक्र से कंठ के रोग जैसे गर्दन का दर्द,थाइरॉयड समस्या दूर होती है तथा
थाइरॉयड ग्रंथि से स्रवित होने वाले अनेक हार्मोन्स जो अनेक शारीरिक व मानसिक
क्रिया को करते है,सही ढंग से स्रवित होने लगते है।
सावधानियाँ
कपालभाति का अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए क्योकि यह पूर्णतः पेट की क्रिया है
अतः पेट का खाली रहना आवश्यक है।
यह क्रिया किसी योग्य गुरु के निर्देश में ही करनी चाहिए क्योकि गलत ढंग से
करने से लाभ की जगह हानि होती है।
पेट सम्बन्धी समस्या जैसे पेट का आपरेशन आँत सम्बन्धी समस्या आदि में यह
अभ्यास नहीं करना चाहिए।
अस्थमा,उच्च रक्त चाप,ह्रदय रोग में यह क्रिया किसी योग आचार्य के मार्गदर्शन में ही करे।
गर्भवती महिला को कपालभाति का अभ्यास नही करना चाहिए।
इन समूहो को ही चक्र कहते है।इन चक्रो की संख्या भी सात होती है।
मूलाधार चक्र (गुदा से थोड़ा सा ऊपर ),स्वाधिष्ठान चक्र(लिंग से थोड़ा सा ऊपर ),मणिपुर चक्र(नाभि के पास ),अनाहत चक्र (ह्रदय के पास ),विशुद्धि चक्र (कंठ के पास ),आज्ञा चक्र (दोनों आँखों के मध्य माथे पर ),सहस्रार चक्र (सिर के ऊपरी हिस्से में )।
कपालभाति मूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान चक्र,मणिपुर चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र को सक्रिय करता है।जिनके अपने अलग अलग कार्य है। मूलाधार व स्वाधिष्ठान व मणिपुर चक्र से बवासीर,भगन्दर,पेशाब सम्बन्धी समस्या,महिलाओ में जनन सम्बन्धी समस्या ,मासिक धर्म की समस्या ,वीर्य सम्बन्धी समस्या ठीक होती है। उदर की सभी समस्याओ का निदान होता है जैसे अपच,कब्ज,पिलिया,ब्लड शुगर,किडनी सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है।
अनाहत चक्र के सक्रिय होने से ह्रदय सम्बन्धी समस्याऐ ठीक होती है। रक्त का शुद्धिकरण होता है जिससे शरीर में गाँठ नहीं बनती और पुरानी गाँठ समाप्त हो जाती है अतः यह कैंसर के लिए भी बहुत उपयोगी है तथा एलर्जी सम्बन्धी रोग भी दूर होते है। हीमोग्लोबिन पर्याप्त मात्र में बनता है।
इसी प्रकार विशुद्धि चक्र से कंठ के रोग जैसे गर्दन का दर्द,थाइरॉयड समस्या दूर होती है तथा
थाइरॉयड ग्रंथि से स्रवित होने वाले अनेक हार्मोन्स जो अनेक शारीरिक व मानसिक
क्रिया को करते है,सही ढंग से स्रवित होने लगते है।
सावधानियाँ
कपालभाति का अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए क्योकि यह पूर्णतः पेट की क्रिया है
अतः पेट का खाली रहना आवश्यक है।
यह क्रिया किसी योग्य गुरु के निर्देश में ही करनी चाहिए क्योकि गलत ढंग से
करने से लाभ की जगह हानि होती है।
पेट सम्बन्धी समस्या जैसे पेट का आपरेशन आँत सम्बन्धी समस्या आदि में यह
अभ्यास नहीं करना चाहिए।
अस्थमा,उच्च रक्त चाप,ह्रदय रोग में यह क्रिया किसी योग आचार्य के मार्गदर्शन में ही करे।
गर्भवती महिला को कपालभाति का अभ्यास नही करना चाहिए।
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