14 Sept 2015

चक्रासन

चक्रासन 
चक्रासन पीठ को मजबूत करने वाला आसन है। यह पथ के बल लेटनेवाले आसनो में यह आसन महत्त्वपूर्ण आसन है। जीवन भर व्यक्ति अपनी कमर को आगे की तरफ ही झुकाता है जिससे जीवन के अंतिम पड़ाव तक अर्थात बुढ़ापे तक आते आते हमारी कमर आगे की तरफ झुक जाती है। परन्तु इस आसन के अभ्यास से यह समस्या नहीं होती है। प्रारम्भ में हो सकता इस  हुए कुछ दिक्क़त हो क्योकि ये आसन थोड़ा कठिन आसन है। परन्तु धीरे धीरे अभ्यास करते रहने से यह आसन होने लगता है। इसमें जैसा नाम से स्पष्ट है चक्रासन अर्थात : चक्र और आसन, इसमें शरीर की पोजीशन चक्र  समान गोल करते है।
विधि :
पीठ के बल सीधे लेटते है हाथ कमर की बराबर में रखकर गहरे लम्बे श्वांस लेकर शरीर को सामान्य करते है। फिर दोनों घुटनो को मोड़कर दोनों हाथो को कंधो की बराबर में रखकर पूरक करके (श्वांस भरकर )हाथो से व पैरो से सहारा लेते हुए कमर ,कंधे व गर्दन को उपर उठाते है और गर्दन को कमर की ले जाकर चक्र बनाते है यथासंभव उसी अवस्था में कुम्भक(श्वांस रोकते है ) करते है,और फिर रेचन करते हुए  (श्वांस छोड़ते हुए )वापस आते है। 
लाभ :  
शरीर को विशेष लाभ प्रदान करने वाले आसनो में चक्रासन का विशेष स्थान है। यह आसन multipurpose आसन है।यह सम्पूर्ण शरीर क्रियातंत्र को सक्रिय करता है। यह आसान पैरो की एड्डीयो को मजबूत करता है। पंजो का दर्द दूर करता है। पिंडलियों की मांसपेशियों को मजबूत करता है ,घुटनो सम्बन्धी समस्या का निदान इस आसन के अभ्यास से हो जाता है। जंघाओं के दर्द दूर होते है। गुप्तांगो की अच्छी खिचाई इस आसन से होती है जिससे समस्त गुप्त रोग धीरे धीरे ठीक होने लगते है मासपेशियों में तनाव आ जाता है। शीध्रपतन ,धातुपात  नहीं होता। मूत्र सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है। कमर के साथ साथ यह आसन पेट के लिए भी मूल आसन है। पेट की लगभग समस्त बीमारियो को दूर कर देता है। मुख्यतः यह आसन अपान वायु को गुदा मार्ग से निकालने में सहायक है।  अपान वायु का सही दिशा से न बहना ही पेट की सभी बीमारियो का कारण है। पेट में दर्द होना,दुखन रहना,भारीपन रहना,भूख न लगना,कब्ज रहना ,भोजन का सही न पचना ,आंतो  का सही काम न करना ,लिवर,अग्नाशय का सही काम न करना,अपेंडिक्स जैसी समस्या इस आसन के नहीं होती है।गुर्दे सही ढंग से कार्य करते है। फेफड़ो की ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता बढ़ती है। छाती मजबूत होती है।गर्दन सम्बन्धी समस्या नहीं होती ,कंधे मजबूत होते है। गर्दन से जुड़े रीढ़ के मनके मजबूत होते है।रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और लचीली होकर अधिक सक्रिय हो जाती है कमर के सभी विकार दूर हो जाते है।
सावधानियाँ :  
खाली पेट अभ्यास न करे।
अगर नाभि डीगती है तो यह आसन ना करे या हल्का करे।
कमर दर्द,गर्दन दर्द हो तो आसन न करे।
पेट सम्बन्धी कोई समस्या हो तो यह आसन न करे।
नितम्बो में अगर दर्द रहता हो तो यह आसन न करे।
ह्रदय रोगी इस आसन को ना करे।
 गर्भवती महिला इस आसन को न करे। 





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