11 Sept 2015

हलासन

हलासन 
इसमें शरीर को हल की आकृति में रखते है। इसलिए इसे हलासन कहते है जिस प्रकार हल से भूमि की जुताई करने से भूमि उपजाऊ होती है।जमीन को नुकसान पहुचने वाले कीड़े नष्ट हो जाते है,जिससे फसल अच्छी होती है। उसी प्रकार शरीर को इस आकृति में रखने से शरीर के विकार खत्म हो जाते है।
 हलासन की कुछ सीमाये भी है अतः इसी कारण इस आसन को सभी लोग नहीं कर सकते है। 
अनेक लोगो पर किये गए प्रयोगो में पाया गया है की हलासन शरीर पर अनेक प्रकार से कार्य करता है। 
विधि:
सर्वप्रथम जमीनपर पेट के बल लेटते है हाथो को कमर की बराबर में रखकर गहरी लम्बी श्वांस लेकर शरीर को सामान्य करते है। फिर रेचन (श्वांस निकलते )करते हुए पैरो को उठकर सिर के पीछे जमीन से लगाते है।हाथ पैरो के विपरीत जमीन पर रखते है।यथासंभव उसी अवस्था में रुकते है फिर पूरक करते हुए वापस आते है।जमीन पर आते वक़्त हाथो से सहारा लेते हुए आते है जिससे की blance बना रहे। 
लाभ: 
हलासन के अभ्यास से सम्पूर्ण शरीर में लचक आती है और विशेकर कमर की मांसपेशियाँ व रीढ़ की हड्डी अधिक लचीली व् मजबूत होती है।यह रीढ़ की हड्डी के नितम्बो से जुड़े निचले जोड़ व गर्दन से जुड़े जोड़, दोनों को पुष्ट करता है,और हड्डी के बीच के मनको को भी क्रियाशील करता है।    
अगर शरीर के विभिन्न अंगो पर हलासन के प्रभाव का वर्णन किया जाये तो.……… 
यह आसन पैरो में जंघाओं ,पिंडलियों व घुटनो को लाभ पहुचता है। और उन्हें दृढ करता है ,उनके विकारो को दूर करता है।नितम्बो की हड्डियों ,मासपेशियों में लचक लाता है ,अतिरिक्त चर्बी को दूर करता है ,उनके दर्द दूर करता है। 
इस आसन के अभ्यास से सभी सेक्स रोगो में लाभ मिलता है। जैसे ;धातु का पतला होना,धातु का पतन होना,स्वप्नदोष,कर्मेंद्रि का सख्त न होना,कर्मेंद्रि का उत्तेजित न होना,शुक्राणु की कमी आदि रोग 
में यह आसन लाभ देता है ।
 मूत्र सम्बन्धी रोग जैसे:बहुमूत्र (मूत्र का बार बार आना) ,बूंद बूंद आना,मूत्र के समय जलन होना,मूत्र के साथ धातु का आना,प्रेशर के समय मूत्र रोकने से रुक रुककर आना आदि अनेक विकार ठीक हो जाते है। 
उदर की सभी समस्याए जैसे कब्ज,अपच,गैस,सुगर ठीक होने लगती है। 
फेफड़ो का संकुचन होता है जो फेफड़ो की कार्य क्षमता को बढ़ाता है। 
बिहार योग स्कूल की एक रिसर्च में पाया गया है की ह्रदय रोग में हलासन बहुत ही लाभदायक है। जो व्यक्ति इसका अभ्यास करता है उसे ह्रदय रोग नहीं हो सकता।
इस आसन से थायरॉयड ग्रंथि का विकास होता है ,जिससे थायरॉयड की समस्या दूर हो जाती है ,और भी अनेक क्रियाओ को शरीर में थायरॉयड ग्रंथि करती है जैसे :शरीर के जो विजातीय तत्व है उन्हें बाहर निकलना ,शरीर का ताप नियंत्रित करना ,शरीर में कैल्सियम व फास्फोरस को पचने में उत्प्रेरक का कार्य करना ,शारीरिक व मानसिक वृद्धि करने में सहायक होना आदि और भी बहुत सी क्रियाएँ है जो थायरॉयड ग्रंथि करती है।इस आसन से ये सब समस्याएं दूर हो जाती है।  
यह ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए भी हार्मोन्स उत्पन्न करती है। 
इस आसन से पैराथायरॉयड ग्रन्थियां भी क्रियाशील होती है जिनसे पैराथार्मोन हार्मोन बनता है जो शरीर में कैल्सियम व फास्फोरस की मात्रा को नियंत्रित करता है। अगर यह मात्रा कम ज्यादा हो जाये तो इसका दोनों दशा में नुकसान होता है।अगर यह हार्मोन कम बनता है तो हड्डिया कमजोर हो जाती है और अगर ज्यादा बनता है तो कैल्सियम व फास्फोरस रक्त में घुलने लगता है जिससे गुर्दे में पथरी होने लगती है।
सावधानियाँ :  
खाली पेट ही अभ्यास करे। 
कमर दर्द या गर्दन दर्द में यह अभ्यास न करे। 
घेंघा रोग हो तो यह अभ्यास न करे। 
थायरॉयड अधिक बनता हो तो यह आसन न करे। 
साधक का वजन अगर घट रहा हो तो यह आसन न करे। 
अनिद्रा,उत्तेजना हो तो यह आसन न करे। 
गुर्दे में पथरी हो तो यह आसन न करे।  


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