10 Sept 2015

उत्तान पादासन

उत्तान पादासन 
पीठ के बल लेटकर किये जाने वाले विभिन्न आसनो में उत्तानपादासन एक सरल आसन है। लेटकर किये जाने वाले आसनो में यह  एक प्रारम्भिक आसन है। उत्तान अर्थ भी पीठ के बल लेटना होता है। पाद -पैर को कहते है।पीठ के बल लेटकर पैरो को पकड़ना ही उत्तानपादासन है। 
विधि :
सर्वप्रथम पीठ के बल लेटते है फिर हाथो को कमर की बराबर में रखकर गहरे लम्बे श्वांस भरकर शरीर को सामान्य करते है।इसके बाद पूरक करते हुए दोनों पैरो को एक साथ ४५ डिग्री तक धीरे धीरे करके उठाते है। और आँखों को पैरो के अगुठों पर स्थिर रखते है और उन्हें देखते है। यथासम्भव कुम्भक (श्वांस रोकते है) करते है,फिर रेचन (श्वांस छोड़ते हुए ) हुए वापस आते है। इसी प्रकार इस आसन को तीन बार करते है। 
लाभ :    
  एक बहुत ही सामान्य  बीमारी है नाभि  डिगना परन्तु जिसे यह समस्या हो वह इससे बहुत दुखी रहता है इसका  इलाज डॉक्टर नहीं बता पाते है।इस नाभि की वजह से अनेक प्रकार की दिक्कते व्यक्ति को होती है। जैसे पेट में दर्द रहना,चुभन रहना,भारीपन रहना,बार टॉयलेट जाना,अपच,कब्ज रहना आदि अनेक समस्याए इस आसन से ठीक हो जाती है। किडनी की अपशिष्टों को छानने की क्षमता बढ़ती है।जिससे मूत्र सम्बन्धी समस्या,गुर्दे की पथरी नहीं होती है। गुदा सम्बन्धी समस्या दूर होती है। धातु अधो मुख होता है। जंघाएँ ,घुटने मजबूत होते है। पेट की अतिरिक्त चर्बी दूर हो जाती है।चेहरे पर चमक आती है,चेहरे की रौनक बढ़ाता है। नितम्ब लचीले व मजबूत होते है। कमर के विकार दूर होते है। रक्त संचरण अच्छा होता है। जो ह्रदय के लाभ को इंगित करता है। आखो की रौशनी बढ़ती है।
सावधानियाँ :   
खाली पेट ही अभ्यास करे।
ह्रदय रोगी कुम्भक न करे।
कमर दर्द के रोगी अभ्यास न करे।
उच्च रक्त चाप वाले हल्का कुम्भक करे या कुम्भक न करे और श्वांस की गति सामान्य रखे।
गर्भवती महिलाये ये आसन न करे।

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