स्वस्तिकासन
अब बैठकर किये जाने वाले आसनो का वर्णन करेंगे हठयोग प्रदीपिका,घेरण्ड सहिंता में बैठकर किये जाने वाले आसनो का ही वर्णन है। इन सब में सबसे पहले स्वस्तिकासन का वर्णन किया गया है। भगवान आदिनाथ ने जिन चार आसनो को सबसे महत्त्वपूर्ण बताया है उनमे स्वस्तिकासन भी बताया है।
स्वस्तिकासन अर्थात स्वस्तिक के समान शरीर की आकृति करना।
विधि :
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की
"जानूर्वोरन्तरे सम्यककृत्वा पादतले उभे ।
ऋजुकायः समासीनः स्वस्तिकम् तत प्रचक्षते ।।"
दोनों पैरो के तलवो को दोनों जानुओ (जंघा ) व उरुओं (घुटनो) के मध्य अच्छी प्रकार स्थापित करके ऋजुभाव से सुखपूर्वक बैठना ही स्वस्तिकासन है।
घेरण्ड सहिंता में भी यही विधि कही गयी है।
लाभ :
स्वस्तिकासन के लाभ का वर्णन हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता में नहीं किया गया है। शायद उनके लाभ की तरफ उनका ध्यान ही नही गया होगा। या जानबूझकर वर्णन ही नहीं किया होगा।
अन्य सहिंतान्तरो में स्वस्तिकासन के लाभ के बारे में कहा गया है
"अनेन विधिना योगी साधयेन्मारुतं सुधीः ।
देहे न क्रमते व्याधिस्तस्य वायुश्च सिद्धयति ।।
स्वस्तिकम् योगिभिर्गोप्यं सुस्थीकरणमुत्तमम् । "
इस आसन के करने से शरीर की सभी व्याधियाँ विनष्ट हो जाती है जिससे प्राणायाम की सिद्धि प्राप्त होती है। यह स्वस्तिकासन योगियों के लिए अत्यंत गोपनीय है। एवं शरीर को स्थिर करने वाला है।
विश्लेषण :
जैसा की कहा गया है की इस आसन के अभ्यास से सभी व्याधियाँ नष्ट हो जाती है। इसका अर्थ यह है की शरीर में कोई बीमारी इस आसन के अभ्यास से नहीं रहती है,सब दूर हो जाती है। सुनने में थोड़ा अटपटा सा है परन्तु यह सच है। जब इस आसन का अभ्यास साधक करता है तो उसे खुद आभास होने लगता है की लम्बे समय के अभ्यास से शरीर से बीमारियाँ दूर हो रही है। स्वस्तिकासन में बैठकर ध्यान किया जाता है। अर्थात यह एक ध्यानात्मक आसन है। ध्यान के लिए जब हम किसी भी आसन में बैठते है तो शरीर का सम्पूर्ण अंग प्रत्यंग अपनी सम्पूर्ण गति को इतनी मंद कर देता है की बिलकुल ही सुसुप्त अवस्था में पहुंच जाये।उस अवस्था में वह अपनी ऊर्जा को संग्रहित करने लगता है। बाहर से ब्रमांड की ऊर्जा भी मिलती है जो शरीर को विकार रहित करने में काम आती है। यह ऊर्जा उस वक़्त जो शरीर की जरूरत होती है उसी की पूर्ति करती है।
दूसरा लाभ कहा गया है की इससे प्राणायाम की सिद्धि होती है। अतः प्राणायाम की सिद्धि के फलस्वरूप होने वाले सभी लाभ जैसे शरीर का हल्का होना ,श्वांस का लम्बा होना,श्वांस का निर्मल होना,पाचन शक्ति का बढ़ जाना,भूख पर नियंत्रण होना आदि लाभ साधक को होते है।त्रिदोष दोष सम अवस्था में आ जाते है। तथा और भी अनेक लाभ शरीर को होते है जैसे यह रोग पैरो के समस्त रोग जैसे पैरो के नसों का दर्द,एक पैर का दर्द ,पैरो की मांसपेशियों का दर्द,पिंडलियों का दर्द ,पंजो को अधिक पसीना आना ,पंजो को ठण्ड लगना आदि सभी रोग दूर हो जाते है इसमें शरीर धीरे धीरे शांत होने लगता है जिसका पूर्ण लाभ ह्रदय को फेफड़ो को भी मिलता है। और ये अंग भी क्रियाशील होते है।
सावधानियाँ :
अगर पैरो में बहुत दर्द है तो ये आसन न करे।
कमर दर्द हो या रीढ़ की हड्डी की समस्या हो तो ये आसन न करे।
सावधानियाँ :
अगर पैरो में बहुत दर्द है तो ये आसन न करे।
कमर दर्द हो या रीढ़ की हड्डी की समस्या हो तो ये आसन न करे।
सायटिका हो यह आसन न करे।
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