24 Sept 2015

गोमुखासन

गोमुखासन 
हठयोगप्रदीपिका में दूसरे जिस आसन का वर्णन किया गया है वह गोमुखासन है। यह आसन अधिक कठोर नहीं है। थोड़े से अभ्यास से यह आसन होने लगता है। गोमुख अर्थात गाय का मुख।इसमें शरीर की आकृति गाय के मुख के समान करते है। 
विधिः 
हठयोगप्रदीपिका में इसके बारे में केवल एक श्लोक ही कहा गया है। जिसके अनुसार 
"सव्ये दक्षिणगुल्फं तू पृष्ठ पाशर्वे नियोजयेत् । 
दक्षिण अपि तथा सव्यं गोमुखं गोमुखाकृति ।।"
दाई एड़ी को बाये नितम्ब के निचे तथा बायीं एड़ी को दाये नितम्ब के निचे रखकर गाय के मुख के समान आकृति बनाने से गोमुखासन बनता है।हठयोग प्रदीपिका में हाथो की स्थिति का कोई वर्णन नहीं किया गया है।  
इसके अलावा घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की  .... 
"पादौ च भूमौ संस्थाप्य पृष्ठपाशर्वे निवेशयेत्।
स्थिर  समासघ गोमुखं गोमुखाकृति।।"
भूतल पर दोनों पैरो को स्थित करके पीठ के दोनों और से बाहर निकालकर स्थिर करना और ऋजु भाव से गोमुख की तरह उन्नतमुख होकर समासीन होना ही गोमुखासन कहलाता है। 
घेरण्ड सहिंता में पैरो की स्थिति स्पष्ट नहीं की है की पैरो को किस प्रकार स्थापित करना है।  
वर्तमान में जो गोमुखासन प्रचलित है वह हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता का मिला जुला रूप है। 
कैसे  … 
इसमें दाये घुटने से पैर को मोड़कर घुटने को जमीन पर रखते हुए एड़ी को बाये नितम्ब के निचे रखते है। उसी प्रकार बाये पैर को मोड़कर घुटने को दाए पैर के घुटने के उपर रखते है तथा एड़ी को दाये पैर के नितम्ब के निचे रखते है। इस प्रकार घुटनो को रखने से ऐसी आकृति बन जाती है जैसी गाय के मुख की।
अब हाथो की स्थिति स्पष्ट करते है
इसमें वही हाथ गर्दन के पीछे से लेकर जाते है जो घुटना उपर होता है अर्थात बाए हाथ को गर्दन के पीछे से ले जाते है और दूसरे हाथ अर्थात दाए हाथ को कमर के पीछे से ले जाकर दोनों हाथो को लॉक करते है,मिलाते है। इसी प्रकार दूसरे क्रम में करते है,अर्थात दाए घुटने को बाए घुटने के उपर रखकर दाए हाथ को गर्दन के पीछे से लाकर बाए हाथ को कमर के पीछे से लाकर लॉक करते है ,मिलाते है। निगाह सामने किसी एक बिंदु पर स्थिर
करते है।कमर व गर्दन को सीधी रखते है।
लाभ :
हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता में से किसी में भी गोमुखासन के लाभ का वर्णन नहीं किया गया है। इस बारे में दोनों ग्रन्थ मोन है। परन्तु अभ्यास द्वारा देखा गया है की यह आसन पैरो को बहुत लाभ पहुचाता है। जंघाएँ मजबूत होती है। पिंडलियाँ पुष्ट होती है। घुटनो को लाभ मिलता है और इसके साथ ही गुप्तांगो की सभी मासपेशियां खिचती है।जिससे समस्त गुप्त रोग जैसे धातु पतन ,धातु का पतला होना ,स्वप्नदोष आदि ठीक हो जाता है। किडनी मजबूत होती है जिससे मूत्र सम्बन्धी रोग जैसे मूत्र का बार बार आना ,बून्द बून्द आना,मूत्र में जलन आदि ठीक हो जाता है।अंडकोष की वृद्धि नहीं होती है। तथा शुक्राणु पर्याप्त मात्र में बनते है।  महिलाओ की मासिकधर्म सम्बन्धी समस्याएं दूर हो जाती है।नितम्बो की हड्डिया मजबूत होती है। पेट के रोग जैसे कब्ज,अपच,मंदाग्नि दूर हो जाती है। फेफड़ो का विकास होता है जिससे उनकी ऑक्सीजन ग्रहण की क्षमता बढ़ती है। छाती चौड़ी होती है। ह्रदय की धमनियों व शिराओं को रक्त देने व लेने की क्षमता बढ़ जाती है। हाथो की अच्छी मालिस होती है और कंधे व कोहनियाँ पुष्ट होती है।
सावधानियाँ : 
खाली पेट अभ्यास करे।
अगर कमर या रीढ़ की हड्डी में अधिक दर्द हो तो आसन न करे।
गर्दन दर्द हो तो आसन न करे।
कंधो में कोई समस्या हो तो आसन न करे।



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