21 Oct 2015

योगसाधक का भोजन

      योगसाधक का भोजन 
भोजन के सम्बन्ध में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की साधक को मिताहारी होना चाहिए। अपने पूर्ण आहार को भगवान को अर्पित कर उसका चतुर्थ अंश कम खाना ही मिताहार है।
"कटवम्लतिक्ष्णलवणोष्णहरितशाकसौवीरतेलतिलसर्षपमद्यमत्स्यान्। 
आजादिमांस दधितक्रकुलत्थकोलपिण्याक  हिङगुलशुनाद्यमपथ्यमाहुः।।"
कटु ,अम्ल,तीखा,नमकीन,गर्म,हरी शाक,खट्टी भाजी,तेल,तिल,सरसो ,शराब,मछली व बकरे का मांस ,दही,छाछ,कुल्थी,बैर,खाली,हिंग तथा लहशुन आदि वस्तुओं को योगसाधको को अपथ्यकारक है। 
"भोजनमहितं विद्यात् परप्यूष्णीकृतं रुक्षम। 
अति लवणमम्लयुक्तं कदशनशाकोत्कटं वर्ज्यम्।।"
फिर से गर्म किया हुआ ,अधिक नमक या खटाई वाला अपथ्यकारक तथा वर्जित शाक युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। 
"गोधूमशालियवषष्टिकशोभनान्नम 
क्षीराज्यखंड नवनीतसितामधुनि। 
शुण्ठीपटोलकफलादिकपञ्चशाकं 
मुदगादिदिव्यमुदकं च यमीन्द्रपथ्यम्।।  "
उत्तम साधको  को गेहू,चावल,जौ,साठी चावल जैसे सुपाच्य अन्न दूध ,घी,खांड ,मक्खन,मिस्री,मधु,सुंठ,परवल,जैसे फल आदि पांच प्रकार के शाक (जीवंती,बथुआ,चोलाई,मेघनाद ,पुनर्नवा ),मूंग आदि तथा वर्ष का जल पथ्यकारक भोजन है। 
"पुष्टं सुमधुरं,स्निग्ध गव्यं धातु प्रपोषणम 
मनोभिलषितं योग्यं योगी भोजनमाचरेत् "
योगाभ्यासी को पुष्टिकारक,सुमधु,स्निग्ध ,गाय के दूध से बनी वस्तु,धातु को पुष्ट करने वाला मनोकुल तथा विहित भोजन करना चाहिए। 
घेरण्ड सहिंता में भी भोजन के विषय में विस्तार से कहा है कि -
शाल्यन्नं यवपिण्डं वा गोधूमपिण्डकं तथा। 
मुग्दम माषचणकादि शुभ्रच्च् तुषवर्जितम्।।
योगसाधको को शालिधान्य का चावल ,यव ,गेहू,मूंग ,उड़द,या चने की दाल भोजन में ग्रहण करनी चाहिए। 
"पटोलं पनसं मानं कक्कोलच्च शुकाशकम् 
द्राढिकां कर्कटी रम्भां डुम्बरी कण्टकण्टकम "
योग साधक को परवल,परिमित मात्रा में कटहल ,कंकोल,करेला,आढ़की (अरुई ),ककड़ी,केला,गूलर,चोलाई का शाक आदि वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। 
"आमरम्भां  बालरम्भां रम्भादण्डच्च मूलकम्। 
वात्तर्की मुल्कं ऋद्धिं योगी भोजनमाचरेत्।।"
कच्चा केला,पक्का केला,रम्भादण्ड अर्थात केले का दंड ,मूली ,बैगन एवं ऋद्धि (आोषधी विशेष )का उपयोग करना चाहिए। 
"कट्वम्लं लवणं तिक्त भृष्टच्च दधि तक्रकम।
शाकोत्कटं तथा मद्य तालच्च पंसंतथा।।
कुलत्थं मसुरं पाण्डुं कुष्माण्डं शाकदण्डकम् 
तुम्बिकोल कपित्थच्च कांतबिल्वं पलाशकम्।।
कदम्बं जम्बीरं बिम्बं लकुचं लशुनं विषम। 
कामरङग प्रियालच्च हिङगुशाल्मलीकेमुकम्। 
योगारम्भे वर्जयते पथस्त्रीवहींसेवनम्।।
कड़वा,खट्टा,नमकीन,तीखा इनसे बनी वस्तुए ,भुने हुए द्रव्य जैसे चना आदि दही ,मठ्ठा ,तीखे शाक,सूरा ,छुहारा ,पके कटहल,कुल्थी,मसूर की दाल ,पाण्डु का शाक ,कुम्हड़ा ,शाकदण्ड ,तुम्बी(घीया )बेर,कैथ ,काँटेदार बेल,पलाश,कदम्ब,जम्बीर,निम्बू ,शेमर,गोभी,रास्ता चलना,स्त्री संग,आग तापना योग के अभ्यास के समय में योगियों को नहीं करना चहिये 
"नवनीतं घृतं क्षीरं गुडशक्रादि चौक्षवम्। 
पञ्चरम्भां नारिकेलं दाड़िम मासिवसवम। 
द्राक्षान्तु नवनी धात्री रस्मम्लं विवर्जितम्।।"
योग के आरंभ में साधको को नवनीत मक्खन ,घृत ,दूध गन्ने से बानी वस्तुए जैसे गुड,शककर आदि ,पांच प्रकार के केले,नारियल,अनार,सौफ ,मुनक्का ,नोनिये का शाक,आँवला ,अम्ल रस से बनी वस्तुए भोजन में उपयोग नहीं करना चाहिए। 
"एलाजातिलवङगच्च पौरुषं जम्बू जाम्बूलम। 
हरितकिच्च खर्जूरं योगी लक्षणमाचरेत् " 
इलायची  जाति अर्थात चमेली ,लौंग ,तेजोदायक,वस्तुए ,जामुन,कठजामुन,हर्रे,और खजूर का प्रयोग योगसाधना के प्रारंभ में साधक को करना चाहिये। 




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