प्राणायाम
आज के ब्लॉग से हम प्राणायाम पर विस्तृत चर्चा करेंगे। वैसे तो असंख्य आसन बचे है परन्तु लगभग सभी मुख्य आसनो का वर्णन जिनकी आवश्यकता थी हम कर चुके है। अतः आगे बढ़ते हुए अब प्राणायाम का वर्णन करते है। हमारे महपुरूषों ने,साधुओ ने,ऋषियों ने जीवन का बहुत ही सूक्ष्मता से अध्ययन किया और पाया की श्वांस ही जीवन का आधार है। श्वांस ही जीवन है। जब तक श्वांस चलता है,व्यक्ति जीवित रहता है। रुकते ही मृत हो जाता है। बहुत लम्बी खोज के बाद वो इस तथ्य पर पहुंचे की प्रत्येक जीव के श्वांस की संख्या निश्चित है। कोई प्राणी इसको तेजी से ग्रहण करना व छोड़ना करता है तो उसका जीवन जल्दी ही खत्म हो जाता है। जैसे कुत्ता,सूअर,भैस आदि, और कोई प्राणी इस प्रक्रिया को बहुत ही धीमी गति से करता है। अर्थात बहुत ही धीमी गति से दीर्ध श्वांस लेता है ,और दीर्ध श्वांस छोड़ता है तो उसका जीवन बहुत लम्बा होता है। जैसे कछुआ।
इन तथ्यों को मानकर उन्होंने श्वांस पर नियंत्रण का उपाय सोचा जो विभिन्न प्रकार से श्वांस को रोककर,चलाकर उन्होंने किया।
अब जब वे विभिन्न प्रकार से श्वांस प्रश्वांस पर नियंत्रण करने लगे तो उनके शरीर का शुद्धिकरण होने लगा बुद्धि सूक्ष्म होने लगी,सूक्ष्म विषयो का चिंतन करने लगी। स्वयं के प्रति नजरिया बदलने लगा। स्वयं के स्वरूप को साधक समझने लगे। वो ज्यो ज्यो अभ्यास करते त्यों त्यों उनके प्राण को आयाम मिलते उनके श्वांस की गति धीमी होती चित्त और मन ओर शांत होते।
इस प्रकार प्राणो को उचाई या आयाम देने को ही योग में प्राणायाम कहा है।
हठयोग में भी प्राणायाम का विशेष महत्त्व है। हठयोगप्रदीपिका के द्वितीय उपदेश में प्राणायाम का वर्णन है। और घेरण्ड सहिंता में पाँचवा उपदेश प्राणायाम का वर्णन करता है उससे पहले मुद्राओ का व प्रत्याहार का वर्णन है।
प्राणायाम से पहले दोनों ग्रंथो में खान पान सम्बन्धी कुछ नियम दिए है की साधक को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए। अतः प्रथम उन्ही का वर्णन हम करेंगे। उसके बाद आगे की चर्चा करेंगे।
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