16 Oct 2015

सिंहासन Sinhasan (Asan)

   सिंहासन
यह आसन भी उसी क्रम का आसन है जैसे सिद्धासन ,पद्मासन आदि है। अर्थात यह आसन भी सूक्ष्म नाड़ियो को ही प्रभावित करता है। यह आसन साधक को अनेक लाभ प्रदान करता है। सिंह के समान बल प्रदान करता है जिस कारण इसे सिंहासन कहते है। 
हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में इस आसन का वर्णन किया गया है। 
विधिः  
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया हैं की -
"गुल्फौ च वृषणस्याधः सिवन्या पाश्वर्योः क्षिपेत। 
दक्षिण सव्यगुल्फं तू दक्षगुल्फं तू सव्यके।।
हस्तौ तू जान्वोः संस्थाप्यं स्वाङ्गुलीः सम्प्रसार्य च। 
व्यात्तवक्त्रो निरीक्षेत नासाग्रं तू समाहितः।। 
दोनों एड़ी अंडकोष के निचे सिवनी के दोनों और बायीं एड़ी को दाए पाश्र्व में तथा दाई एड़ी को बाए पाश्र्व में लगाकर दोनों हाथो को घुटनो पर रखकर सभी अंगुलियों को फैलाकर मुख को चोडा खोलकर नासाग्र दृष्टि रखते हुए अच्छी प्रकार स्थित होकर बैठना ही सिंहासन है।
 घेरण्ड सहिंता में कहा गया है -
  "गुल्फौ च वृषणस्याधो व्युत्क्रमेणोदधर्वतां  गतः। 
चिति मुलो भूमिसंस्थ कृत्वा च जानुनोपरि।।
व्यक्तवक्त्रो जलंध्रच नासागरमवलोकयेत्। "
दोनों गुल्फौ को (एड़ी को)उल्टे क्रम में अण्डकोष के निचे स्थापित कर ऊपर की और बाहर करते हुए दोनों घुटनो को  भूतल से लगाकर जलांधर बन्ध का आश्रय लेकर मुख को खोलकर नासिका के अग्रभाग को  देखना ही सिंहासन है। 
घेरण्ड सहिंता में हाथो की स्थिति स्पष्ट नहीं है। 
फल (लाभ ):
सिंहासन भवेदेतत् पूजितं योगीपुङगवैह। 
बंधत्रितयसंधानं कुरुते चासनोत्तमम्। 
श्रेष्ट योगियों द्वारा पूजित यह आसन सिंहासन कहलाता है आसनो में उत्तम यह आसन तीनो बांधो के अभ्यास को सरल बनाता है। अर्थात इस आसन के फल वही है जो तीनो बन्धो के फलस्वरूप सिद्ध होने पर होते है। जैसे जलान्धर बन्ध से गले सम्बन्धी समस्त रोग जैसे -गले में सूजन,गले की एलर्जी ,गले का पकना,जैसे रोग दूर हो जाते है। थायरॉयड व पैराथायरॉयड ग्रंथि व पिटुटरी ग्रंथि के सभी रोग ठीक हो जाते है। सर्वाइकल की समस्या नहीं होती है तथा और अनेक समस्याओ का निदान हो जाता है।
उड्डयन बन्ध के फलस्वरूप सभी उदर सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते है। और कब्ज,अपच,मंदाग्नि व आंतो सम्बन्धी समस्या नहीं होती है।
मूल बंध के फल के रूप में मूत्र सम्बन्धी रोग,उपस्थ संबंधी रोग व गुदा सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते है।
यह आसन धातु को विशेष पुष्ट करता है तथा ब्रह्मचर्य पालन में सहायता करता है।
 यह आसन और भी अनेक समस्याओ को जैसे पैरो में दर्द रहना,चंचलता,मानसिक व शारीरिक दुर्बलता ,अनिद्रा,घबराहट,डिप्रेशन,तनाव को दूर करता है।
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
सिंहासन भवेदेतत् सर्वव्याधि विनाशकम्।  
यह सिंहासन समस्त रोगो को दूर करता है। उनका विनाश करता है।
सावधानियाँ :
 खाली पेट ही अभ्यास करे।
पैरो में दर्द या चोट लगी हो तो आसन न करे।
गर्दन सम्बन्धी समस्या हो तो यह आसन न करे।
अंडकोष में दर्द या अन्य कोई समस्या हो तो यह आसन न करे
कमर दर्द हो या स्लिप डिस्क की समस्या हो तो आसन न करे।
नितम्बो में कोई दिक्क्त हो तो आसन न करे       
     

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