19 Oct 2015

भद्रासन bhadrasan (Asan)

भद्रासन 
हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में इस आसन का वर्णन है। परन्तु घेरण्ड सहिंता में वर्णित भद्रासनहठयोगप्रदीपिका में वर्णित आसन से भिन्न है। हठयोगप्रदीपिका में वर्णित यह आसन अंतिम आसन है। इसका ही दूसरा नाम गोरक्षासन कहा है। 
विधिः 
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है -
"गुल्फौ च वर्षणस्याधः सिवन्याः पाश्र्वयोः क्षिपेत्। 
सव्यगुल्फं तथा सव्ये दक्षगुल्फं तू दक्षिणे।।
पाश्र्व पादौ च पाणिभ्यां दृढं बद्ध्वा सुनिश्चलं।" 
दोनों एड़ी को अंडकोष के निचे सीवनी के पाश्र्व में रखे। बायीं एड़ी को सीवनी के बाये भाग के निचे तथा दायी एड़ी को सीवनी के दाये भाग के निचे रखकर दोनों पांवो के अग्रभाग को अच्छी प्रकार से पकड़कर स्थिर बैठना ही भद्रासन है। 
लाभ :
लाभ के सम्बन्ध में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"भद्रासनं भवेदेतत् सर्वव्याधिविनाशनम्।"
यह भद्रासन सभी व्याधियों का नाश करने वाला है। 
क्योकि यह आसन भी ध्यानात्मक आसन है। अर्थात यह भी सूक्ष्म नाड़ियो को,नसों को शुद्ध करते है। जिससे शरीर में व्याप्त सभी रोग धीरे धीरे दूर होने लगते है। 
अनुभव के आधार कहा जा सकता है की यह आसन अपान वायु को नियंत्रित करता है। अर्थात अपने मार्ग से चलने के लिए बाध्य करता है। और अपने मार्ग से ही निकालता है जिस कारण जोड़ो का दर्द,कंधो का दर्द,घुटनो का दर्द,नितम्बो व कमर का दर्द जैसे रोग ठीक होने लगते है। पेट का भारी दूर हो जाता है। 
मानसिक स्थिरता आती है ,जिससे चंचलता,तनाव,अवसाद,चिंता घबराहट जैसी समस्याएं दूर हो जाती है। 
सावधानियाँ :
खाली पेट ही अभ्यास करे। 
नितम्बो में,घुटनो में दर्द हो तो यह आसन ना करे। 
तितली आसन के पहले इस आसन का अभ्यास करे। 
कमर व गर्दन सीधी रखे। 
एड़ियो को सीवनी से सटाकर रखे। 
पैरो को हाथो से दृढ़ता से पकड़कर रखे।

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