हस्त मुद्राएं(ज्ञान मुद्रा व वायु मुद्रा )
हठयोग के सभी ग्रंथो में मुद्राओ का वर्णन है। इसी क्रम में हम पहले हस्त मुद्राओ का वर्णन करेंगे। ये हस्त मुद्राएं हाथो की उंगुलियों को विभिन्न प्रकार से मिलाकर उनके आकार बनाना है।
हमारे ऋषियों ने ब्रह्माण्ड के लगभग सभी क्षेत्रो में ध्यान क्रिया के द्वारा अनुसंधान किये ,आज का विज्ञान जिन तथ्यों तक अभी नहीं पहुँच पाया है,उन सबको उन्होंने लाखो वर्षो पहले जानकर,पहचान कर लोक हितार्थ कह दिया था। उन्होंने ब्रह्माण्ड पर व स्वयं पर लम्बे समय तक अनुसंधान किये। और बताया की शरीर भी एक ब्रह्माण्ड ही है। अर्थात जो इस ब्रह्माण्ड में है वही इस शरीर में भी है।
जड़ प्रकृति पांच महाभूत (पृथ्वी,वायु,जल,अग्नि,आकाश,)तथा त्रिगुण (सत्व ,रज,तम) से निर्मित है। जब यह जड़ प्रकृति चेतन प्रकृति मन,बुद्धि,अहंकार से संयोग करती है तो जीव की उत्पत्ति होती है। अतः जीव भी इन सभी का समूह है। उन्होंने ही बताया की हाथो की ये पांच उंगुलियां पांच महाभूतों को प्रदर्शित करती है। उन्होंने बताया की अँगूठा अग्नि तत्व को,तर्जनी उंगली वायु तत्व को,मध्यमा आकाश तत्व को,अनामिका पृथ्वी तत्व को और कनिष्का जल तत्व को प्रदर्शित करती है। उन्होंने बताया की इन उंगलियो को विभिन्न प्रकार से मिलाकर लम्बा अभ्यास करने से शारीरिक,मानसिक व अध्यात्मिक तीनो प्रकार के लाभ होते है। उंगलियो को आपस में मिलाकर बनाये गये विभिन्न प्रकार के आकर को ही हस्त मुद्राएं कहते है। हस्त मुद्राओ की संख्या बहुत हो सकती है। उनमे से मुख्य हस्त मुद्राएं निम्न प्रकार है जैसे -
ज्ञान मुद्रा,वायु मुद्रा,प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा,प्राण अपान मुद्रा,शून्य मुद्रा,सूर्य मुद्रा,पृथ्वी मुद्रा आदि
ज्ञान मुद्रा :
अग्नि तत्व व वायु तत्व को मिलाने पर ज्ञान मुद्रा बनती है। अर्थात अंगूठे का पहला पोर व तर्जनी(अंगूठे के पास वाली) उंगली का पहला पोर आपस में मिलाकर थोड़ा दबाने से ज्ञान मुद्रा बनती है। शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है।
उत्तम लाभ के लिए इस मुद्रा को सिद्धासन,पद्मासन में बैठकर करना चाहिए।
लाभ : जैसा की नाम से ही स्पष्ट है। यह मुद्रा बुद्धि को तेज करती है और ज्ञान का संचार करती है। एकाग्रता बढ़ाने में यह मुद्रा उपयोगी है। ध्यान में भी यह मुद्रा सहायक है। मस्तिष्क सम्बन्धी सभी रोगो को यह मुद्रा दूर करती है। माइग्रेन ,सिरदर्द,तनाव,डिप्रेशन,अनिद्रा,किसी भी कार्य में मन न लगना जैसी समस्याएं दूर हो जाती है। ध्यान की उच्चतम अवस्था तक जाने में भी यह मुद्रा सहयोगी है। इससे संतोष की भावना का संचार होता है। ईर्ष्या,द्वेष जैसे विकार दूर हो जाते है। इस मुद्रा के अभ्यास से अविद्या नष्ट हो जाती है,और साधक को अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाता है।
वायु मुद्रा :
ज्ञान मुद्रा की तरह इसमें भी अंगूठा व तर्जनी उंगली का उपयोग होता है।तर्जनी उंगली के पहले पोर को अंगूठे के अंतिम पोर अर्थात मूल में (जड़ में)लगाते है। अंगूठे से उंगली को थोड़ा दबाकर रखते है,और शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है। वज्रासन व पद्मासन में इस मुद्रा से विशेष लाभ मिलता है।
लाभ: यह मुद्रा वायु दोष से होने वाले सभी रोगो में लाभ प्रदान करती है। गठिया,घुटनो का दर्द,कंधे का दर्द,गर्दन का दर्द,साइटिका ,पेट में गैस बनना,कमर दर्द,जोड़ो का दर्द,एसिडिटी, पेट का भारीपन अपच,कब्ज जैसे रोग इस मुद्रा के अभ्यास से दूर हो जाते है। मन की चंचलता ,चित्त का भारीपन भी इस मुद्रा से दूर होता है। एकाग्रता बढ़ाने में भी यह मुद्रा सहायक है।
उत्तम लाभ के लिए इस मुद्रा को सिद्धासन,पद्मासन में बैठकर करना चाहिए।
लाभ : जैसा की नाम से ही स्पष्ट है। यह मुद्रा बुद्धि को तेज करती है और ज्ञान का संचार करती है। एकाग्रता बढ़ाने में यह मुद्रा उपयोगी है। ध्यान में भी यह मुद्रा सहायक है। मस्तिष्क सम्बन्धी सभी रोगो को यह मुद्रा दूर करती है। माइग्रेन ,सिरदर्द,तनाव,डिप्रेशन,अनिद्रा,किसी भी कार्य में मन न लगना जैसी समस्याएं दूर हो जाती है। ध्यान की उच्चतम अवस्था तक जाने में भी यह मुद्रा सहयोगी है। इससे संतोष की भावना का संचार होता है। ईर्ष्या,द्वेष जैसे विकार दूर हो जाते है। इस मुद्रा के अभ्यास से अविद्या नष्ट हो जाती है,और साधक को अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाता है।
ज्ञान मुद्रा |
वायु मुद्रा :
ज्ञान मुद्रा की तरह इसमें भी अंगूठा व तर्जनी उंगली का उपयोग होता है।तर्जनी उंगली के पहले पोर को अंगूठे के अंतिम पोर अर्थात मूल में (जड़ में)लगाते है। अंगूठे से उंगली को थोड़ा दबाकर रखते है,और शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है। वज्रासन व पद्मासन में इस मुद्रा से विशेष लाभ मिलता है।
लाभ: यह मुद्रा वायु दोष से होने वाले सभी रोगो में लाभ प्रदान करती है। गठिया,घुटनो का दर्द,कंधे का दर्द,गर्दन का दर्द,साइटिका ,पेट में गैस बनना,कमर दर्द,जोड़ो का दर्द,एसिडिटी, पेट का भारीपन अपच,कब्ज जैसे रोग इस मुद्रा के अभ्यास से दूर हो जाते है। मन की चंचलता ,चित्त का भारीपन भी इस मुद्रा से दूर होता है। एकाग्रता बढ़ाने में भी यह मुद्रा सहायक है।
वायु मुद्रा |
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