हस्त मुद्राएं(शून्य मुद्रा व पृथ्वी मुद्रा )
शून्य मुद्रा
आकाश तत्व से संबंधित मध्यमा उंगली के प्रथम पोर को अंगूठे के मूल से लगाकर हल्का दबाने से शून्य या आकाश मुद्रा बनती है। शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है।यह मुद्रा आकाश के स्वरूप को समझने में सहयोग करती है।
लाभ : शरीर में उपस्थित स्पेस आकाश तत्व को रिप्रेजेंट करता है। अर्थात शरीर की खाली जगह आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए यह उन अंगो को लाभ प्रदान करती है ,जिनमे खाली स्थान होता है। जैसे नाक,कान,गला आदि। इस प्रकार यह कान के सभी रोग जैसे -कान से पानी बहना,कान से न सुनना,खुजली होना,सर सर की आवाज आना,दर्द होना इसी प्रकार गले के रोग जैसे गले की सूजन,गले में खरास होना,थायरॉयड की समस्या आदि सभी रोग ठीक हो जाते है।
शून्य मुद्रा |
पृथ्वी मुद्रा
पृथ्वी तत्व वाली अनामिका उंगली के प्रथम पोर को अगुठे के प्रथम पोर से मिलाकर हल्का दबाने से पृथ्वी मुद्रा बनती है। शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है।
लाभ: पृथ्वी स्थिरता का प्रतीक है। तथा उसका गुण कमी की पूर्ति करना तथा अतिरिक्त को ग्रहण करना होता है। मिटटी तत्व सम्पूर्ण शरीर में उपस्थित रहता है अतः यह सम्पूर्ण शरीर को लाभ प्रदान करता है।
यह शरीर के जड़ तत्व को दूर करता है। अर्थात शरीर को अधिक क्रियाशील करता है और चंचलता को दूर करता है अर्थात स्थिरता लाता है। शरीर के नाक ,कान,गले,हाथ,पैर,ह्रदय तथा पेट सम्बन्धी रोगो को दूर करने में पृथ्वी मुद्रा उपयोगी है। इस मुद्रा के अभ्यास से मोटे लोग पतले होते है तथा पतले लोग मोटे होते है। शरीर के कार्बोहाइड्रेड्स,विटामिन,प्रोटीन,वसा जैसे तत्व की मात्रा के कम ज्यादा होने पर यह मुद्रा नियंत्रित करती है। व्यक्ति की सहन शक्ति बढ़ जाती है उसकी क्षमा करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। इस मुद्रा को वज्रासन में बैठकर करने से कब्ज ,अपच जैसे रोगो में लाभ होता है।
पृथ्वी मुद्रा |
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