7 Apr 2016

महावेध

महावेध 
मुद्राओं में महावेध मुद्रा का महत्त्व महाबंध व महामुद्रा से भी अधिक है। हठयोग के ग्रंथो में कहा गया है की अगर कोई साधक महाबंध व महामुद्रा का अभ्यास तो करता है परन्तु महावेध का अभ्यास नहीं करता है ,तो महाबंध व महामुद्रा महावेध के बिना फलहीन है। सभी ग्रंथो में महावेध का वर्णन है परन्तु सभी की विधि में अन्तर है। हठयोगप्रदीपिका में वर्णित महावेध मुद्रा की विधि अधिक प्रचलित है। 
विधि :  
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"महाबंधस्थितो योगी कृत्वा पुरमेकधी। 
वायुनां गतिमावृत्य निभृतं कण्ठमुद्रया।।"
"समहस्तयुगो भूमौ स्फीचोै सन्ताड येच्चछनैः।
पुटद्वयमतिक्रम्य वायुः स्फुरित मध्यगः।।  "
साधक महाबंध लगाकर एकाग्रचित्त हो पूरक करके श्वांस प्रश्वांस को जालन्धर बंध द्वारा रोककर कुम्भक प्राणायाम करके दोनों हथेलियों को जमीन पर अच्छी तरह (तुला के समान ) रखकर नितम्बों को हल्के व धीरे धीरे भूमि पर बार बार पटके ऐसा करने से वायु दोनों पुंटो इड़ा व पिंगला को छोड़कर सुषुम्ना में गतिशील हो जाता है।  
और घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
" रूपयौवनलावण्यं नारीणां पुरुषं विना।
मूलबन्धमहाबन्धौ महावेधं विना तथा ॥२१॥
महाबन्धं समासाद्य उड्डीनकुम्भकं चरेत्।
        महावेधः समाख्यातो योगिनां सिद्धिदायकः ॥२२॥
           अथ महावेधस्य फलकथनम्।
   महाबन्धमूलबन्धौ महावेधसमन्वितौ ।
           प्रत्यहं कुरुतेयस्तु स योगीयोगवित्तमः ॥२३॥
     न च मृत्यु भयं तस्य न जरा तस्य विद्यते।
            गोपनीयः प्रयत्नेन वेधोऽयं योगिपुंगवैः ॥२४॥"
महाबंध मुद्रा लगाकर हथेलियों को जमीन पर रखकर शरीर को उपर उठा ले उसी अवस्था उसी अवस्था में उड्डीयान बंध लगाये कुम्भक प्राणायाम करें जितनी देर रूक सकते है रुके फिर वापस आ जाये। 
(NOTE ; इस मुद्रा को पद्मासन में बैठकर भी किया जा सकता है।या फिर सिद्धासन में भी किया जा सकता है  )
इस प्रकार सरल ढंग से कह सकते है की पद्मासन या सिद्धासन लगाकर मूलबन्ध लगाए फिर कुम्भक प्राणायाम करके  दोनों हथेलियों को जमीन पर रखकर उड्डीयान बन्ध लगाकर नितम्बों को उपर उठाकर बार बार धीरे धीरे व हल्के से जमीन पर पटकना ही महावेध मुद्रा कहलाती है।  
लाभ :
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"महावेधोअयमभ्यासंमहासिद्धिप्रदायकः। 
वलिपलितवेपघ्नः सेव्यते साधकोत्तमै।।
एतत् त्रयं महागुह्यं जरामृत्युविनाशनम। 
वहिनवृद्धिकरं चैव ह्यणिमादिगुणप्रदम्।।
अष्टधा क्रियते चैव यामे यामे दिने दिने। 
पुण्यसम्भारसन्धायि पापोैघभिदूरं सदा। 
सम्यक् शिक्षावतामेवं स्वल्पं प्रथमसाधनम्।।  "
इस मुद्रा के अभ्यास से साधक को महान लाभ की प्राप्ति होती है।इससे चेहरे की झुर्री ,बालों का समय से पहले सफेद होना तथा शरीर में कम्पन होने जैसे रोग दूर हो जाते है। 
ये तीनो मुद्रा (महाबंध,महामुद्रा और महावेध )अत्यन्त गुप्त रखने के योग्य है।ये मुद्राये बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय प्राप्त कराती है। अपच,कब्ज को दूर कर जठर अग्नि प्रदीप्त करती है। तथा सभी आठ प्रकार की सिद्धियो (अणिमा,गणिमा आदि )को प्रदान करती है। 
विश्लेषण : इस प्रकार कहा जा सकता है की  -
ये मुद्रा कब्ज,अपच गैस जैसे रोगों को दूर करती है। मूत्र संबंधी रोग जैसे बहुमूत्र ,मूत्र का बूँद बूँद आना ठीक हो जाता है। धातु संबंधी रोग जैसे शीघ्र पतन स्वप्न दोष जैसे रोग दूर हो जाते है। धातु गाढ़ा होता है,तथा पुष्ट होता है। महिलाओं के मासिकधर्म संबंधी रोग भी इस मुद्रा के अभ्यास से ठीक हो जाते है। 
अब अगर आध्यात्मिक लाभ की बात की जाये जो ग्रंथो में कहे गए है तो  इस मुद्रा के अध्यात्मिक लाभ ही अधिक है। यह मुद्रा भी मुख्यतः कुण्डलिनी जागरण के लिए ही सहायक होती है। और कुंडलिनी शक्ति किस प्रकार व कितना शारीरिक ,मानसिक व अध्यात्मिक लाभ देती है वह कई बार लिखा दिया गया है। इसके साथ ही यह मुद्रा प्राण को सुषुम्ना में बहने के लिए भी विवश करती है। यह भी शरीर व मन के शुद्धि करण की उच्च अवस्था है।  







                                                              



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