पंचधारणा मुद्रा
(पार्थिवी धारणा मुद्रा,आम्भसि धारणा मुद्रा,आग्नेयी धारणा मुद्रा,वायवी धारणा मुद्रा,आकाशी धारणा मुद्रा)
पंचधारणा मुद्रा में पाँच प्रकार की इन धारणा मुद्राओ का वर्णन किया गया है। जिनकी सिद्धि से साधक इस स्थावर जङ्गात्मक जगत
में सब कुछ सिद्ध् कर सकता है।
पाँच प्रकार की धारणा मुद्राए – पार्थिवी, आम्भसि,आग्नेयी,वायवी तथा आकाशी धारणा मुद्राए है।
ये पाँच मुद्राए पांचों तत्व पृथ्वी, जल,अग्नि,वायु और आकाश के मूल स्वरूप को साधक के
सामने स्पष्ट कर उन पर अधिकार प्राप्त कराती है।
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की-
"यत्तत्त्वं हरितालदेशरचितं भोमं लकारान्वितं
वेदास्त्रं कमलासनेन सहितं कृत्वा ह्रदि स्थायिनम्।
प्राणास्तत्र विनीय पञ्चघटिकां चित्तान्वितां धारयेदेषा
वेदास्त्रं कमलासनेन सहितं कृत्वा ह्रदि स्थायिनम्।
प्राणास्तत्र विनीय पञ्चघटिकां चित्तान्वितां धारयेदेषा
स्तम्भकरी भवेत्क्षितिजयं कुर्यादधोधारणा।।"
पृथ्वी तत्व को योगबल से हृदय में ध्यान
करते हुए स्थापित कर प्राणवायु को पूरक करके पाँच घड़ी (दो घंटे) तक कुंभक करके
अविचल हो धारण करने वाली क्रिया पार्थिवी धारणा मुद्रा कहलाती है। इसे अधोधारणा
भी कहते है।
लाभ -
"पार्थिवीधारणा मुद्रा यः करोति दिने दिने।
मृत्युत्जयः स्वयं सोअपि स सिद्धो विचरेद्वुवी।।"
पार्थिवी धारणा मुद्रा का प्रतिदिन
अभ्यास करने से साधक मृत्युञ्जय के सदृश हो जाता है।अर्थात भगवान महेश्वर के समान अमर होकर भूतल पर
विचरण करने लगता है।
आम्भसि धारणा मुद्रा -
"शंखेन्दुप्रतिमच्च कुन्दधवलं तत्त्वं किलालं शुभं
ततपियुषवकारबीजसहितं युक्तं सदा विष्णुना।
प्राणास्तत्र विनिय पञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा
दुःखसहतापनाशनकारी स्यादाम्भासि धारणा। "
ततपियुषवकारबीजसहितं युक्तं सदा विष्णुना।
प्राणास्तत्र विनिय पञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा
दुःखसहतापनाशनकारी स्यादाम्भासि धारणा। "
जलतत्व को योगबल से हृदय में स्थापित
करके एकाग्र चित्त से दो घंटे कुंभक करके धारण करना ही आमभ्सी धारणा मुद्रा है।
फल :
"आमभ्सी परमां मुद्रां यो जानाति स योगवित्।
आग्नेयी धारणा मुद्रा
वायवी धारणा मुद्रा :
आकाशी धारणा मुद्रा :
सावधानियाँ:
जले गभीरे घोरे च मरणं तस्य नो भवेत।।"
इस मुद्रा को जानने वाला साधक भयानक और
गहरे जल में भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है।
आग्नेयी धारणा मुद्रा
"यन्नाभिस्थितमिन्द्रगोपसदृशं बीजं त्रिकोणान्वितं
तत्त्वं तेजमयं प्रदीप्तमरूणं रुद्रेण यत्सिद्धीदम।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा ।।"
तत्त्वं तेजमयं प्रदीप्तमरूणं रुद्रेण यत्सिद्धीदम।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा ।।"
योगबल से अग्नितत्व को हृदय में ध्यान
करते हुए एकाग्र चित्त से पूरक कर दो घंटे कुंभक द्वारा प्राण वायु को धारण करना
ही आग्नेयी धारणा मुद्रा कहलाती है।
लाभ :
"कालगभीरभीतिहरिणी वैश्वानरी धारणा।।"
इस मुद्रा के जानने वाले के लिए संसार का
भय समाप्त हो जाता है। अग्नि तत्व के कारण उस साधक की कभी मृत्यु नहीं होती है।
अर्थात अग्नि में गिरने के बाद भी उसकी मृत्यु नहीं होती है।
वायवी धारणा मुद्रा :
"यद्भिन्नाज्जन पुज्जसन्निभमिदं धूम्रावभासं परं
तत्त्वं सत्त्वमयं यकारसहितं यत्रेश्वरो देवता।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा।।'
तत्त्वं सत्त्वमयं यकारसहितं यत्रेश्वरो देवता।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा।।'
योगबल से वायु तत्व का हृदय में ध्यान
करके एकाग्र चित्त से कुंभक प्राणायाम द्वारा प्राणवायु को दो घंटे धारण करना ही
वायवी धारणा मुद्रा है।
लाभ –
"खे गमनं करोति यमिनां स्याद्वयवी धारणा ।"
इस मुद्रा के अभ्यासी साधक वायु के
प्रकोप से कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते है। और साथ ही वह आकाश में विचरण की शक्ति भी प्राप्त कर
लेते है।
आकाशी धारणा मुद्रा :
"यत्सिन्धो वरशुद्धवारिसदृशं व्योमं परं भासितं
तत्त्वं देवसदाशिनेव सहितं बीजं हकारांवितम्।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा।।"
तत्त्वं देवसदाशिनेव सहितं बीजं हकारांवितम्।
प्राणास्तत्र विनीयपञ्चघटिकां चित्तन्विना धारयेदेषा।।"
आकाशतत्व को योगबल से हृदय में ध्यान
करते हुए एकाग्र चित्त से कुंभक प्राणायाम द्वारा प्राण वायु को दो घंटे धारण करना ही आकाशी धारणा
मुद्रा है।
लाभ –
" मोक्षकपाटभेदनकरी कुर्यान्नभो धारणा।"
इस मुद्रा को साधने पर मोक्ष हेतु बंद
द्वार खुल जाता है। अर्थात इसकी साधना से मुक्ति लाभ प्राप्त हो जाता है।
इन मुद्राओ का अभ्यास आम साधक न करे।
बिना गुरु के ये मुद्राऐ न करे।
ये मुद्राये अति शीघ्र सिद्ध नहीं होती है। जिस कारण कई बार योग साधक का योग पर से विश्वास उठ जाता है।इसलिए ही इन मुद्राओं का अभ्यास करने से पहले योग के कुछ सूक्ष्म अनुभव प्राप्त कर लेने चाहिए। ऐसा करने से साधक को शास्त्रों में कही गयी बातो पर विश्वास हो जाता है,और उसका योग में विश्वास प्रबल हो जाता है,जिससे वह दीर्घ काल तक इन मुद्राओं का अभ्यास करके इनका सिद्धिकरण कर लेता है।
ये मुद्राये अति शीघ्र सिद्ध नहीं होती है। जिस कारण कई बार योग साधक का योग पर से विश्वास उठ जाता है।इसलिए ही इन मुद्राओं का अभ्यास करने से पहले योग के कुछ सूक्ष्म अनुभव प्राप्त कर लेने चाहिए। ऐसा करने से साधक को शास्त्रों में कही गयी बातो पर विश्वास हो जाता है,और उसका योग में विश्वास प्रबल हो जाता है,जिससे वह दीर्घ काल तक इन मुद्राओं का अभ्यास करके इनका सिद्धिकरण कर लेता है।
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