काकी मुद्रा
"काकचंचुवदास्येन पिबद्वायु शनैः शनैः।
काकी मुद्रा भवेदेषा सर्वरोगविनाशिनी।।"
काक के चोंच के सामान मुख को कर के धीरे धीरे वायु का पान करना ही काकी मुद्रा कहलाती है.
लाभ :-
"काकी मुद्रा भवेदेषा सर्वरोगविनाशिनी। "
यह काकी मुद्रा समस्त रोगों का नाश करने वाली है
"अस्याः प्रसादमात्रेंण काकवन्नीरुजो भवेत्।।"
इसके प्रसाद स्वरुप साधक काक ( कौवे) के सामान रोग रहित शरीर वाला हो जाता है।
विश्लेषण :- आयुर्वेद में कहा गया है की शरीर में होने वाली सभी व्याधियों शरीर में उपस्थित वात, पित्त और कफ का सम अवस्था में ना रहने का परिणाम है. इसमें भी वात मुख्य है वात से ही पित्त या कफ भी संतुलन में नहीं रहते हैं। यह मुद्रा वायु दोष को ही दूर करती है। जिस से पित्त व कफ भी सम अवस्था में ही आ जाते हैं।
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करें।
वायु प्रदुषण वाले स्थान पर इस मुद्रा का अभ्यास न करें।
जिनको वायु दोष हो वे इसका अभ्यास।
गठिया हो तो इसका अभ्यास न करें।
पेट में गैस बनती हो तो इसका अभ्यास ना करें।
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करें।
वायु प्रदुषण वाले स्थान पर इस मुद्रा का अभ्यास न करें।
जिनको वायु दोष हो वे इसका अभ्यास।
गठिया हो तो इसका अभ्यास न करें।
पेट में गैस बनती हो तो इसका अभ्यास ना करें।
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