28 Jun 2016

#Yoga Fights Diabetes भुजङ्गिनी मुद्रा

भुजङ्गिनी मुद्रा 
 घेरण्ड संहिता में अंतिम मुद्रा के रूप में  इसका वर्णन किया गया है। 
"वक्त्रं किंच्चित्सुप्रसार्य चानिलं गलया  पिबेत।" 
साधक द्वारा मुख को थोड़ा खोलकर गले से वायु का पान करने को भुजङ्गिनी मुद्रा कहते है। अर्थात जिस प्रकार हम जल पीते है उसी प्रकार वायु का पान करना भुजङ्गिनी मुद्रा कहलाती है।
या ये भी कह सकते है की जिस प्रकार सांप अपने फन को उठाकर अपना मुँह खोलकर जीभ को अंदर बहार करता है उसी प्रकार साधक अपनी गर्दन को थोड़ा आगे की तरफ बढ़ाकर मुँह को उसी तरह खोलकर वायु का पान करे।
फल :-
 "सा भवेद भुजगी मुद्रा जरा मृत्युविनाशिनि।" 
यह मुद्रा जरा व् मृत्यु का नाश करने वाली है। 
"यावच्च  उदरे रोगंजीर्णादि विशेषतः। 
तत सर्व नाशयेदाशु यत्र मुद्रा भुजङ्गिनी।।"
इस मुद्रा के साधक को पेट का कोई भी रोग हो वह ठीक हो जाता है। कब्ज, अजीर्ण जैसे रोग ठीक हो जाते है।क्योकि इससे पाचक रसो का निर्माण होता है।   
सावधानियाँ :-
 मुख को थोड़ा सा खोले 
 वायु धीरे धीरे गले से ग्रहण करे। 
खाली पेट अभ्यास करे। 
 वायु दोष बहुत अधिक हो तो अभ्यास न करे।






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