नियम पालन में आग्रह
नियम का पालन पूर्ण रूप से न करना। यह बात सम्पूर्ण दिनचर्या के लिए है। जैसे नियम से खान पान न करना,नियम से ब्राहमण ,गाय, गुरु की सेवा न करना,ब्रह्यचर्य का पालन न करना,सत्य न बोलना,जीवो के प्रति अहिंसा का भाव न करना,हठयोग का अभ्यास न करना,नियम से संध्या उपासना न करना ,नियम से हवन यज्ञ न करना,महत्मा,ज्ञानी जन ,महपुरषो की संगति न करना। जीवन के सभी नियम इसमे आते है। अगर साधक इनमे से किसी एक को भी करने में शिथिलता करता है तो वह दूसरे नियमो को भी प्रभावित करता है। जैस :योग का अभ्यास नियम से न करना
जब साधक निरंतर व लगातार योग का अभ्यास करता है तो स्वयं के प्रति अधिक जागरूक होता है। वह ईर्ष्या, द्वेष, मोह,लोभ,काम,क्रोध,अभिमान से बचता है। वह सत्य के लिए भी सचेत रहता है। जीवो क प्रति अहिंसा का भाव भी रखता है ब्राह्मण,गाय,गुरुओ की सेवा भी करता है।यज्ञ हवन भी करता है।
योग का निरंतर अभ्यास करने से साधक को अपने भीतर होने वाले परिवर्तनों का अनुभव
होने लगता है,जिससे उसके अंदर योग के प्रति उत्साह व साहस, जैसे गुण पैदा होते है।
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