अधिक बोलना
किसी ने कहा है की मौन सर्वोत्तम भाषण है जहां एक शब्द से काम चले वहा दो का प्रयोग न करे।
उपर्युक्त बात सामान्य जीवन में भी उपयोगी है, और योग के लिए तो यह अत्यन्त आवश्यक है।
अधिक बोलना अनेक कारणों से योगी के लिए बाधक है। जैसे
योग में जब ऊर्जा पैदा होती है तो शरीर को भी उसे सहन करने के लिए उसे सँभालने के लिए,उसे रखने के लिए,ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अधिक बोलने से हमारे शरीर की बहुत सी ऊर्जा नष्ट होती है तथा मन में भी वे सब बाते घूमने लगती है जो हम दूसरो से करते है। मन में अनेक संकल्पो,विकल्पों के चलने से मन की वह शांत अवस्था नष्ट हो जाती है जो योग के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है की जब व्यक्ति अधिक बोलता है तो वह झूठ का प्रयोग भी
अपनी बातचीत में करता है वह अनेक बातो में झूठ बोलकर अतिश्योक्ति करता है।
और झूठ अनेक विकारो की उत्पत्ति का कारण है
अधिक बातचीत में वह अपनी प्रत्येक बात को मनवाने का प्रयास करता है अगर कोई उसका
विरोध करता है तो उसका मन उस व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या,द्वेष से भर जाता है।
और इस प्रकार साधक पतन की तरफ बढ़ जाता है
किसी ने कहा है की मौन सर्वोत्तम भाषण है जहां एक शब्द से काम चले वहा दो का प्रयोग न करे।
उपर्युक्त बात सामान्य जीवन में भी उपयोगी है, और योग के लिए तो यह अत्यन्त आवश्यक है।
अधिक बोलना अनेक कारणों से योगी के लिए बाधक है। जैसे
योग में जब ऊर्जा पैदा होती है तो शरीर को भी उसे सहन करने के लिए उसे सँभालने के लिए,उसे रखने के लिए,ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अधिक बोलने से हमारे शरीर की बहुत सी ऊर्जा नष्ट होती है तथा मन में भी वे सब बाते घूमने लगती है जो हम दूसरो से करते है। मन में अनेक संकल्पो,विकल्पों के चलने से मन की वह शांत अवस्था नष्ट हो जाती है जो योग के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है की जब व्यक्ति अधिक बोलता है तो वह झूठ का प्रयोग भी
अपनी बातचीत में करता है वह अनेक बातो में झूठ बोलकर अतिश्योक्ति करता है।
और झूठ अनेक विकारो की उत्पत्ति का कारण है
अधिक बातचीत में वह अपनी प्रत्येक बात को मनवाने का प्रयास करता है अगर कोई उसका
विरोध करता है तो उसका मन उस व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या,द्वेष से भर जाता है।
और इस प्रकार साधक पतन की तरफ बढ़ जाता है
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