28 Jul 2015

धौती क्रिया करने की विधि

धौती क्रिया करने की विधि 
धौति क्रिया के विभीन्न प्रकार जो घेरण्ड सहिता में दिए गए है आज प्रचलन में नहीं है। उनके मुख्यतः दो कारण है। एक तो इन क्रियाओ को सीखने वाले गुरु आसानी से नहीं मिलते है और स्वम् बिना किसी मार्गदर्शन  के इन्हे करना बहुत ही जटिल है। आज धौति क्रिया वस्त्र धोती के रूप में प्रचलित है। यह क्रिया भी जटिल है परन्तु अभ्यास के बाद यह हो जाती है 
हठयोगप्रदीपिका में वस्त्र धोती का ही विवरण दिया गया है 
इसमें पंद्रह हाथ लम्बे व चार अंगुल चौडे कपडे को प्रतिदिन एक हाथ गुरु निर्देशानुसार निगलने का अभ्यास करते है। अर्थात प्रत्येक दिन एक हाथ लम्बे कपडे को निगलने का अभ्यास करते है। पुरे कपड़ा निगलने के बाद नोली क्रिया या अग्निसार क्रिया करे तथा धीरे धीरे कपडे को बाहर निकाल दे 
धौति क्रिया को करते हुए वमन बहुत तेजी से बार आता है। इसका प्रवाह इतना तेज होता है की साधक बार बार के अभ्यास के बाद भी धौति को नहीं निगल पाता है। उदर से लगने वाले झटको से यह बाहर
 निकल जाती है। जब हम धोती को निगलने लगते है तो दूसरी समस्या हमे सांस लेने में होती है। कई बार सांस में बड़ी घुटन होने लगती है जिससे हम स्वम् ही धौति को बाहर निकल देते है। दोनों अवस्थाओ में साधक को घबराना नहीं चाहिए। 
जब भी वमन आये साधक अपने मुँह को कसकर बंद कर ल। मुँह को इतने दबाव से बंद रखे की झटके लगने के बाद भी वमन बाहर न निकले।प्रेशर कम होते ही साधक को वमन के साथ ही धोती को निगल जाना चाहिए। ऐसा करने से एक झटके के साथ धौति भी निगल ली जाती है। वमन कई बार होगा हर बार साधक को यही प्रयोग करना चाहिए। धीरे धीरे अभ्यास से वमन कम होने लगता है। और बाद में बंद हो जाता है।        जब भी गले में अंदर धोती की गाँठ बनती है अर्थात वह इकठठा हो जाती है तो साँस आने में कठिनाई होने  लगती है।उस समय एक दो घुट जल पी लेना चाहिए। जल पीने से वह गाठ खुल जाती है।  



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