20 Jul 2015

अधिक भोजन करना

योग ऐसी प्राचीनतम  वैज्ञानिक विद्या है जो बड़े ही सूक्ष्म  कारणों प्रभावित होती है। अतः उसके क्षेत्र  में भी बाधा पहुचने वाले तत्व होगे ,जो साधक को उसके मार्ग से हटाएंगे या भटकायेगे। 
जब हठयोग के बाधक तत्व को ध्यान से समझा तो महसूस हुआ की ये तो बड़े ही
 वैज्ञानिक कारण से कहे गए है। 
जैसे पहला तत्व है 'अधिक भोजन करना "
साधु समाज में बड़ा ही प्रचलित नियम है की दोपहर दो बजे के बाद भोजन न करना। क्यों नहीं करना ?
क्योकि अधिक भोजन करने से हम योग का अभ्यास नहीं कर पाते है।
प्रश्न यह है की कैसे नहीं कर पाते?
क्योकि जब भी हम अधिक भोजन खा लेते है तो हमे नींद,आलस्य ,प्रमाद आदि विकार घेर लेते है। 
उस वक्त हमारा सारा सिस्टम खाना पचाने में लगा रहता है। जिस कारण शरीर को 
आराम की आवश्यकता होती है। आसन करने से कम चार या पांच घंटे पहले खाना खा लेना चाहिए। अधिक व भारी खाना पचने में अधिक समय लेता है जो साधक की साधना में बाधक है। 
पेट जब हल्का होगा तब ही प्रणायाम किया जायेगा और साधक ध्यान के लिए बैठ सकता है।
भरे पेट ध्यान में भी बाधा आती है।अधिक खाना खाने से रात को नींद भी ज्यादा आएगी जिस वजह से सुबह उठने में भी दिक्कत होगी। साधक उठ ही नहीं पायेगा।
प्रकृति तीन गुणो का समायोजन है। सत्व,रज,तम सम्पूर्ण सृष्टि इन तीनो गुणों से ही संचालित होती है। सत्व गुण व्यक्ति को अपना स्वरूप जानने  प्रेरित करता है। रज भोग विलाष में रमता है और तम निकृष्ट कार्यो का कारण बनता है। अधिक भोजन तमोगुण को  है,जो मनुष्य के अनेक जन्मो तक भोगो का कारण बनता है।
अधिक भोजन करना यह इंगित करता है की व्यक्ति शरीर को अनमोल समझ रहा है तथा उसकी इच्छा पूर्ति के लिए अधिक भोजन कर रहा है। यह  भाव भी व्यक्ति को आत्मबोध से दूर ले जाता है।
शरीर सूक्ष्म नाड़ियो का बड़ा ही जटिल तंत्र है सभी दिव्य अनुभूतियो को करने वाली नाडिया अति सूक्ष्म है,जो बड़े ही युक्त खान पान करके योग का अभ्यास करने से सक्रिय होती है ,अधिक् भोजन उनकी सक्रियता को बाधित करता है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है
ना त्यश्नतस्तु योगोअस्ति न चैकान्तमनश्नतः। 
न छाती स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।। 
अर्थात यह योग न तो बहुत खाने वाले का और न ही बिलकुल न खाने वाले का तथा न अधिक सोने वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्व होता है 

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