15 Jul 2015

हठयोग

                                                                     हठयोग            
परिचय :  हठयोग के जनक सर्वशक्तिमान आदिनाथ को कहा जाता है। भगवान शिव को ही आदिनाथ कहा जाता है। कहा गया है की भगवान शिव ने ही सर्वप्रथम हठयोग की शिक्षा माता पार्वती को दी थी। जिसके बाद परम्परा से ये योग विद्या सिद्धो व नाथो ने अपनायी। क्योकि बहुत से हठयोग के ग्रन्थ शिव पार्वती के संवाद के रूप में है,जिस कारण भगवन शिव हठयोग के जनक कहे जाते है। हठयोग में हठयोगी का उद्देश्य समाधि की अवस्था को प्राप्त करना है। 
हठयोग यानि की बल पूर्वक कुछ शारीरिक व मानसिक क्रियाओ को करना। 
हठयोग का योगिक अर्थ हकार+ठकार का मिलान करना है। सुर्य नाड़ी (हकार ) से बहने वाली प्राण वायु को, चंद्र नाड़ी (ठकार) से बहने वाली प्राण वायु को मिलाना। अर्थात उष्ण व शीतल प्राण वायु को मिलाना। दोनों नाड़ियो से बहने वाली प्राण वायु को मिलाने से दोनों नाड़ियाँ सम अवस्था में आ जाती है। दोनों नाड़ियो  से प्राण वायु का संचार समान होने लगता है। उस अवस्था में कहा जाता है की प्राण सुषम्ना नाड़ी से प्रवाहित हो रहा है। हठयोग में बताया गया है की सूर्य नाड़ी व चंद्र नाड़ी के मध्य में अति सूक्ष्म व बड़े योगिक महत्व की नाड़ी होती है, जिसे सुषम्ना नाड़ी कहते है।   
 सुषम्ना नाड़ी से प्राण तब तक प्रवाहित नहीं होता जब तक की साधक  दोनों नाड़ियों से बहने वाली प्राण वायु को मिलाकर सम न कर  दे।  सम की अवस्था में आने पर चित्त का निरोध हो जाता है। मन के समस्त व्यापार रूक जाते है। प्राण के सम होने पर अर्थात सुषम्ना नाड़ी से बहने पर छिपी हुई अनन्त शक्तियों का विकाश होने लगता है। तथा साधक ब्रहमाण्ड  के छिपे हुए रहस्य जानने लगता है।  
हठयोग के प्रमुख ग्रन्थ हठयोगप्रदीपिका ,घेरण्ड सहिता ,शिव सहिता है। हठयोगप्रदीपिका के लेखक स्वात्माराम  है ,घेरण्ड सहिता, ऋषि घेरण्ड का  उनके शिष्य चण्ड कपाली को उपदेश है ,तथा शिव सहिता में भगवान शिव  ने पार्वती जी को योग की शिक्षा दी है। इसके लेखक के बारे में कुछ नहीं पता। 
हठयोगप्रदीपिका में चार उपदेश है और घेरण्ड सहिता में सात उपदेश है। हठयोगप्रदीपिका में मुख्यतः   षट्कर्म ,आसन,प्राणायाम,मुद्राऐ ,कुण्डलिनी जागरण तथा समाधि का वर्णन है। 
घेरण्ड संहिता के प्रमुख विषय षट्कर्म,आसन,मुद्रा,प्रत्याहार,प्राणायाम,ध्यान,तथा समाधि है  
जिनके द्वारा शोधन ,द्रढता ,स्थैर्य,धैर्य,लाघव,प्रत्यक्ष ,निर्लिप्त होता है। 
हठयोगियों की एक लम्बी परम्परा हठयोगप्रदीपिका में दी गयी है। श्रीआदिनाथ,मत्स्येन्द्र ,शाबर,मीन,गोरख,मंथान,चर्पटी ,नित्यनाथ,कपाली,कंपा,भानुकी,कापलिक,आदि महान सिद्धो का जिक्र हठयोगप्रदीपिका में है,परन्तु अधिकतर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
veerasan

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