16 Jul 2015

हठयोग के नियम

हठयोग के नियम 
हठयोग का वर्णन करते हुए हम अनेक पहलुओ पर प्रकाश डालेंगे। क्योकि हठयोगप्रदीपिका में योग सिद्धि के लिए कुछ नियम कहे गए है। 
जैसे :        हठविद्या परम गोप्या योगिनां सिद्धिमिच्छताम् 
                भवेद्वीर्यवती गुप्ता निर्वीर्या तू प्रकाशिता ।।
अर्थात हठयोग की यह विद्या परम गोपनीय है। अतः जो भी साधक हठयोग में आस्था रखते हुए इसका आश्रय लेता है उसे सर्वप्रथम यही धायण रखना चाहिए की वर्तमान में या कालांतर में ये गोपनीय विद्या किसी से नहीं कहे। अगर साधक इस नियम का उलंघन करता है तो वह विद्या शक्तिहीन हो जाएगी। 
गुप्त रखने पर यह विद्या शक्तिचलिनी है। 
आखिर ऐसा क्यों कहा गया है की ये गुप्त रखनी चाहिए ,गप्त नहीं राखी तो तो यह शक्तिहीन हो जाएगी। 
इस बारे में अपना मत कहु तोतो शायद हजारो साल पहले समाज की ऐसी रचना नहीं थी जैसी वर्तमान समाज की है। वक्त  हमारे ऋषि गण ,साधुगण तथा सिद्ध पुरुष सम्पूर्ण पृथ्वी के लिए अपनी जिम्मेदारी को समझते थे तथा उसे निभाते थे। समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझते थे तथा उन्हें पूरा भी करते थे 
हठयोग एक ऐसे गोपनीय विद्या है जो व्यक्ति को समाधि तक ले जाती है। समाधि हठयोग का लक्ष्य नहीं उद्देश्य है. यह अंतिम अवस्था है परन्तु समाधि से पहले ही साधक को कुछ गोपनीय शक्तिया मिलने लगती है ,उस अवस्था में अगर कोई साधक अभी परिपक्व नहीं है,वह लालची ,पापी,है वह ईर्ष्या ,राग द्वेष ,काम क्रोध लोभ मोह और अभिमान आदि विकारो से ग्रसित है ,तो वह उन सक्तियो का दुरूपयोग समाज के लिए करेगा। और जब किसी शक्ति का दुरूपयोग होता है ,वह शक्ति नष्ट हो जाती है। कैसे होती है यह दूसरा विषय है। हमरे सिद्ध पुरुष किसी दशा में उन शक्तियों का दुरूपयोग नहीं चाहते थे। वे तो उनका उपयोग बी अपने हित में भी नहीं करते थे। कभी कभी ईश्वरीय भाव में वे उनका उपयोग मानव कल्याण के लिए करते थे।    वो ये भी जानते थे की जो इस विद्या के योग्य है वह इस तक या यह विद्या उस तक स्वयं ही पहुंच जाएगी। परन्तु किसी अयोग्य व्यक्ति तक ये विद्या न पहुंचे इसी कारण  शायद इस विद्या को किसी के सामने
 कहने से रोक दिया गया। 
हठयोगप्रदीपिका में हठयोगियों के लिए कुछ आहार विहार संबंधी नियम भी दिए गए है। 
सुराज्ये धार्मिके देशे सुभीक्षे निरूपद्रवे। 
धनुः प्रमाणपर्यंतं शिलाग्नि जलवर्जिते।
एकांते मठिकमध्ये स्थातव्यं हठयोगिना।
अल्पद्वारमरन्ध्रगर्तविवरं नात्युच्चनीचायतम। 
सम्यग्गोपमय सान्द्रलिप्तममलं निः शेषजन्तुज्झितम्।  
बह्यो मण्डपवेदीकुपरुचिरं प्रकरसंवेष्टिम। 
प्रोक्तं योगमठस्य लक्षणमिदं सिद्धेर्हठाभ्यासिभिः।।
हठयोग के साधक को ऐसे धार्मिक शांत उपद्रव से रहित देश  में  रहना  चाहिए। एकांत में छोटी सी कुटिया बनाकर उसके चार हाथ प्रयोजन तक पत्थर ,अग्नि,जल न रक्खे। छोटे द्वार वाली मठिका में कोई बिल या छिद्र न हो ,भूमि समतल हो गोबर से लिपि हो। वह कीड़े ,मकोड़े न हो। बाहर मंडप ,वेदी तथा कुआँ हो।
 यह सम्पूर्ण स्थान दीवार से घिरा हो। उपरोक्त नियम हठयोग के लिय बडे  आवश्यक है। 
जैसे अगर कोई देश  या स्थान धर्मिक नहीं होगा ,धर्म कर्म में लोगो की आस्था नहीं होगी तो हठयोगी 
chakraasan 

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