योग के प्रकार
योग के अनेक प्रकार हमारे शास्त्रो ने बताये है। जैसे सांख्ययोग ,अष्टांगयोग ,कर्मयोग,
मंत्रयोग , क्रियायोग ,ध्यानयोग ,भक्तियोग,हठयोग,आदि।
क्योकि योग का अर्थ जोड़ना ,मिलाना है। आत्मा को परमात्मा से जोड़ना या मिलाना।
अतः योग के वे,अनेक असंख्य प्रकार हो सकते है, जिससे भी उपरोक्त उद्देश्य पूरा होता है।
जैसे ;सांख्य योग मे सब कर्मो के त्याग द्वारा भगवत प्राप्ति कही गयी है।
कर्मयोग में प्रत्येक कर्म को बिना फल की इच्छा के करने को कहा गया है। अर्थात बिना
किसी लाभ,हानि ,सुख,दुःख,ईर्ष्या ,द्वेष के प्रत्येक कर्म को कर्तव्य समझकर करना।
अनन्य समर्पण भाव से अपना सब कुछ ईश्वर के चरणो में समर्पित करके ईश्वर
की पूजा करना ही भक्तियोग है।
हठयोग में ह -हकार ,ठ -ठकार को मिलाया जाता है। हकार यानि की पिंगला (सूर्य नाड़ी )
और ठकार यानि इड़ा (चंद्र नाड़ी )को मिलाना ,अर्थात दोनों स्वर को (दोनों श्वास को मिलाना )
मिलाना सामान्यतः जीवनभर मानव का केवल एक स्वर ही एक वक्त में चलता है
योग से दोनों स्वर को एक साथ चलाकर,श्वास को सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित करते है।
इस नाड़ी का अध्यात्म में विशेष महत्त्व है। इस नाड़ी में श्वास प्रवाह से आत्मा परमात्मा
की और अग्रसर होती है।
हठयोग का दूसरा अर्थ हठ पूर्वक विभीन्न क्रियाऐ करते हुए आत्मा को परमात्मा
से मिलाना भी है।
अष्टांगयोग का प्रतिपादन महर्षि पतञ्जलि ने योगशुत्र में किया। उन्होंने अष्टांगयोग
में योग के आठ अंग बतायें है ,जिनके द्वारा आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है।
मनुष्य अपने स्वरूप का बोध कर सकता है।
सुप्त वज्रासन |
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