योग की उत्पत्ति
हमारे शास्त्रो में योग की उत्त्पत्ति के अनेक सन्दर्भ है। जैसे कहा जाता है की सृष्टि के आरम्भ में ही आदियोगी भगवान शंकर ने योग का सर्वप्रथम सम्पूर्ण अंगो के साथ हमरे पूर्वजो को ज्ञान दिया था। इस प्रकार भगवान शंकर को योग की उत्पत्ति करने वाला कहा जाता है
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है "इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवे अब्रवीत्।।"
अर्थात सृष्टि के प्रारम्भ में मैंने यह अविनाशी योग सूर्य से कहा था। सूर्य ने परम्परा से अपने पुत्र वैवस्वत मनु को कहा, और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा था।
"एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालनेह महता योगो नष्टः परन्तपः।"
ऐसी प्रकार परम्परा से चलते हुए इस योग को राजाओ और ऋषियों ने अपने पूर्वजो से जाना। परन्तु बाद में यह योग इस पृथ्वीलोक से लुप्त सा हो गया।
उपरोक्त राजाओ की वंशावली सृष्टि कर्म के प्रारम्भिक कल की है। इस प्रकार स्पष्ट होता है की योग की उत्पत्ति मानव जीवन के प्रारम्भिक चरण में ही हुई।
जो योग प्रारम्भ से ही गुरु शिष्य या पिता पुत्र परम्परा से मौखिक ज्ञान के द्वारा दिया जाता था। उसी योगिक ज्ञान को सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने योगशूत्र नामक शास्त्र के रूप में संकलित किया।
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