28 Aug 2015

नटराजन आसन

नटराजन आसन 
नट अर्थात नृत्य करने वाला और राजन -राजा 
नृत्य का राजा अर्थात भगवान शिव। 
क्योकि नृत्य की उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा हुई थी।और योग की उत्पत्ति भी भगवान शिव ने ही की थी। इस कारण इनका कोई तो सम्बन्ध होगा।संबंध है बड़ा ही स्पष्ट सम्बन्ध है वह है संतुलन का सम्बन्ध।संतुलन नृत्य के लिए भी आवश्यक है और योग के लिए भी आवश्यक है। 
कहा जाता है की भगवान शिव नटराज आसान का हमेशा ही अभ्यास करते थे कितना सच है पता नहीं। परन्तु जो भी यह आसान अनेक शारीरिक व मानसिक लाभ देता है,जिनका वर्णन हम यहाँ करेंगे। 
विधिः 
सर्वप्रथम सावधान मुद्रा में खड़े होते है। अब बाये पैर को पीछे की तरफ मोड़कर घुटने से गोलाई में ऊपर की तरफ उठाते है ,फिर पूरक करके बाये हाथ को उपर की तरफ से पीछे ले जाकर बाये पैर का अंगूठा पकड़कर क्षमता अनुसार ऊपर की तरफ खीचते है। और दाए हाथ को सामने व ऊपर की तरफ तथा कमर व गर्दन को सीधा रख कर आँखों को एक बिंदु पर स्थिर करते है।यथासंभव कुम्भक करते है और फिर रेचन करते हुए वापस आ जाते है।अब इसी प्रकार दूसरे पैर भी करते है।दोनों पैरो से क्रमशःकरने के बाद आसन पूरा होता है। लाभ :  
नटराज आसन स्नायु तंत्र पर नियंत्रण करने वाला बड़ा ही महत्त्वपूर्ण आसन है।इस आसन के अनेक लाभ है। 
यह अनेक प्रकार से नसों को,नाड़ियों को,मासपेशियों को,हड्डियों को,अंगो को पुष्ट करता है,मजबूत करता है। यह  उंगलियो की नसों के दर्द,पंजे के दर्द,पिन्ड्लियो,घुटनो,और जंघाओं की समस्याओ को दूर करता है नितम्बो के जोड़ो को ,रीढ़ की हड्डी को अधिक लचीला,सक्रिय व दृढ करता है।इसके अभ्यास से हाथो की कोहनियो व कंधो के दर्द दूर होते है।धातु प्रबल होता है।यह आसन पेट की मासपेशियों में अच्छा खिचाव करता है,जिससे अग्नाशय से इन्सुलिन का निर्माण अच्छे से होने से शुगर नहीं होता।लिवर पर असर करता है जिससे पाचन क्रिया अच्छी होती है।कब्ज,अपच नहीं रहती और पेट में गैस भी नहीं बनती।आंतो के प्रत्येक हिस्से में गति होती है जिससे उनकी क्रियाशीलता बढ़ती है।थाइरॉयड व पिटुटरी ग्रंथि सक्रिय होती है जिससे अनेक प्रकार से स्नायु व मानसिक तंत्र प्रभावित होता है। 
दिमाग पर नियंत्रण के लिए यह आसन बहुत उपयोगी है। क्योकि पैरो के अंगूठे से पिंडलियों,जंघाओं,से होते हुए नाडिया मस्तिष्क से जुडी होती है,तो जब हम हम पैरो को खीचते है और कुम्भक करते है तो मस्तिष्क को दो प्रकार से ऊर्जा मिलती है।एक तो नाड़ियो के खीचने से उनकी सक्रियता से,दूसरे अतिरिक्त प्राण वायु का उनमे संचार होने से। इस कारण मस्तिष्क के लगभग सभी प्रकार के विकार या सभी प्रकार की मानसिक कमजोरियां जैसे विचारो में चंचलता होना,दिमाग का एक विषय पर केंद्रित न होना,उतावलापन होना,हाथ पैर का कापना,क्रोध ज्यादा आना,भावुकता  ज्यादा होना,घबराहट होना,ध्यान न लगना,
किसी कार्य में मन न लगना,छोटी छोटी बातो पर तनाव लेना आदि अनेक बीमारिया नटराजन 
आसन के अभ्यास से दूर हो जाती है। 
अध्यात्मिक विश्लेषण करने पर महसूस हुआ नटराजन आसन आज्ञा चक्र को सक्रिय करता है।आज्ञा चक्र का जाग्रत होना योग की एक बड़ी उपलब्धि है।इसके जाग्रत होने से दिव्य दृश्य दिखाई देने लगते है,छुपी हुई वस्तु दिखाई देने लगती है,दूर दृश्य दिखाई देने लगते है,भविष्य की घटनाये दिखाई देने लगती है। सभी भौतिक तत्व को रूप स्पष्ट हो जाता है। दूसर व्यक्तिओ पर नियंत्रण की शक्ति आ जाती है। 
यही कारण है की नटराजन आसन से आँखों की रोशनी भी बढ़ती है। 
आज्ञाचक्र के साथ ही यह आसन मूलाधार,स्वधिष्ठान व् मणिपुर चक्र को भी प्रभावित करता है 
सावधानियाँ : 
खली पेट ही अभ्यास करे। 
कमर दर्द या गर्दन दर्द हो तो यह अभ्यास न करे। 
ह्रदय रोगी पैर को अधिक न खिचे और न कुम्भक करे। 
पैरो सम्बन्धी चोट हो तो इस आसन का अभ्यास न करे। 
इस आसन के बाद उत्थित जानूशीर्षासन जरूर करे।  
   


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