कूर्मासन
कूर्मासन अर्थात कूर्म आसन अर्थात कछुआ के समान आकृति। हलाकि इसमें शरीर की आकृति कछुऐ के समान नहीं होती है।परन्तु इसमें साधक में कछुऐ के समान स्थिरता आ जाती है।वर्तमान में कूर्मासन का दूसरा स्वरूप प्रचलन में है जिसमे शरीर की आकृति कछुए के समान होती है।इस आसन की विधि हठयोगप्रदीपिका व घेरण्डसहिंता में अलग अलग दी गयी है।परन्तु योगियों में हठयोगप्रदीपिका की विधि ही प्रचलित है।
विधिः
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है ---
"गुदं निरुध्य गुल्फाभ्यां व्युत्क्रमेण समाहितः।
कूर्मासन भवेवेददिति योग विदो विदुः।। "
दोनों पाँव की एड़ी को गुदा पर रखते हुए एड़ियो से गुदा को दबाकर पाँव (पंजे )आगे को फैलाकर रहना ही योग के जानकार के लिए कूर्मासन है इससे अधिक इस आसन के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
घेरण्ड सहिंता में जिस कूर्मासन का वर्णन है वह आसान इस आसन से भिन्न है।
लाभ :
यह आसन विशेषतः पिंडलियों व जंघाओं की मांसपेशियों को दृढ करता है,पैरो के विकार दूर करता है। पंजो व एड़ियो के दर्द दूर होते है।नितम्ब मजबूत व लचीले होते है।मूल बन्ध दृढ़ होता है।यह आसन गुदा के समस्त रोगो जैसे बवासीर ,भगन्दर आदि को दूर करता है।गुदा का कोई भी रोग साधक को नहीं होता।मलाशय दृढ़ होता हैजिससे मल बिना प्रयास के ही हो जाता है।आंतो को मजबूत करता है।मूत्र सम्बन्धी व धातु सम्बन्धी समस्त रोग दूर हो जाते है।महिलाओ की मासिकधर्म सम्बन्धी समस्याएं जैसे अनियमितता व दर्द की समस्या दूर हो जाती है।गर्भ धारण से सम्बंधित समस्या दूर हो जाती है।किडनी मजबूत होती है।पेट पर भी यह आसन सकारात्मक प्रभाव डालता है जिससे कब्ज,अपच,गैस जैसी दूर हो जाती है।
सावधानियाँ :
घुटनो में अधिक दर्द या घुटनो की अन्य कोई समस्या हो तो आसन न करे।
पैरो में दर्द या कोई दिक्क़त हो तो आसन न करे।
कमर में दर्द या गर्दन में दर्द हो तो आसन न करे या अधिक देर तक आसान में न करे ।
गुदा सम्बन्धी कोई रोग हो तो आसन में न करे ।
हर्निया की समस्या हो तो आसन न करे।
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